देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

बहुत कुछ लिखना शेष है!


बहुत कुछ लिखना शेष है!
चाहता हूँ उन सब पर लिखूँ
जो कभी मखमली चद्दर पर न सोएं हो
न ही उन्हें रातों में आते हो रेस्त्रां में खाने के सपने।

मेरे शब्दों में समाया हो 
सत्य का प्रतिमान
शब्दों से करना चाहता हूँ 
आह्वान
उन दबे कुचले लोगों का 
लिखना चाहता हूँ दास्तान
कहना चाहता हूँ शब्दों से 
उनका भूत भविष्य व वर्तमान
जिनके पैर पत्थरों से कुचलकर
बना दिए जाते हैं पंगु।

जिनके मस्तिष्क में अभिशप्त लावा
ढूँस-ढूँस कर भर दिया जाता है
कि आने वाले कई वर्षों तक
वैसे ही बने रहे लाचार
सिर्फ अपने वोट देकर बनाते रहें सत्ता
परिवर्तन के कभी न आए उन्हें विचार।

मैं जब तक रहूँगा, 
लिखता रहूँगा
अपने शब्दों से उनके अंदर 
जगाऊँगा ज्वालामुखी
जो फटकर कर दे तहस-नहस
और हो जाए परिवर्तन।

उस निरंकुशता व अन्नाय के खिलाफ
जो सदा ही रोकते हैं रास्ते
उन दीन-हीन-वंचित लोगों को आगे बढ़ने से
न कर सका ऐसा तो निश्चित ही
अगले जन्म में फिर कवि ही बनूँगा 
फिर से उनके लिए लड़ाई लड़ूँगा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें