एक स्त्री को समझते हुए
लिखावट
सी महीन
त्वचा सुंदरता से भरपूर
लिखती हो काजल की कालिख से कविताएँ
सच कहूँ तो
तुम स्त्री ही हो सकतीं हो।
विचारणीय
होतीं हैं, तुम्हारी सोची हुई हर
बातें
क्योंकि
हर बात में उपस्थित हो
तुम, तुम्हारी जीभ, आवाज और होठों से निकली भांप
सच
कहूँ तो
लगता है कि इसी भांप से
तुम सेंकती हो तपती भट्टी पर रोटियाँ
हाँ!
तुम ही हो जन्मदात्री
जिसने इस पृथ्वी को जन्म दिया है
जन्म दिया है
हमेंए वनस्पति व जीवों को
इस धरती के सुख-दुखों को
पहचाना
मैं
भूल गया था तुम्हें
जान पाया हूँ
अर्द्ध उम्र के बाद...
सच
कहूँ तो
अवश्य मैं तुम्हें
और भी जानना चाहता हूँ कि
तुम अभी भी कहीं न कहीं
शेष बची हो,
मेरे
अंदर
इस धरती के अंदर
ब्रह्माण्ड के अंदर
चारो धामों के अंदर
सिंदूर से लेकर सफेद रंगों के अंदर...!
जिसे
मैं जानना चाहता हूँ कि
एक स्त्री को पहचानने के लिए
क्या हर पुरुष को भी कभी स्त्री होना चाहिए!
त्वचा सुंदरता से भरपूर
लिखती हो काजल की कालिख से कविताएँ
सच कहूँ तो
तुम स्त्री ही हो सकतीं हो।
क्योंकि
हर बात में उपस्थित हो
तुम, तुम्हारी जीभ, आवाज और होठों से निकली भांप
लगता है कि इसी भांप से
तुम सेंकती हो तपती भट्टी पर रोटियाँ
जिसने इस पृथ्वी को जन्म दिया है
जन्म दिया है
हमेंए वनस्पति व जीवों को
इस धरती के सुख-दुखों को
भूल गया था तुम्हें
जान पाया हूँ
अर्द्ध उम्र के बाद...
अवश्य मैं तुम्हें
और भी जानना चाहता हूँ कि
तुम अभी भी कहीं न कहीं
शेष बची हो,
इस धरती के अंदर
ब्रह्माण्ड के अंदर
चारो धामों के अंदर
सिंदूर से लेकर सफेद रंगों के अंदर...!
एक स्त्री को पहचानने के लिए
क्या हर पुरुष को भी कभी स्त्री होना चाहिए!
&
poetrohit2001@gmail.com
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