डॉ. शैलेश शुक्ला

हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता और न्यू मीडिया

भारत में पत्रकारिता की शुरुआत 1780 ई. में हुई। उस समय जेम्स ऑगस्टस हिक्की द्वारा प्रथम मुद्रित अंग्रेजी समाचार ‘कलकत्ता जेनरल एडवरटाइजर (हिक्की गजट) प्रकाशित किया गया था। सन् 1780-1818 तक भारतीय पत्रकारिता पर केवल अंग्रेज ही छाए रहे। सभी पत्र अंग्रेजी में ही छपे। भारतीय भाषाओं में समाचार-पत्रों का इतिहास 1818 ई. से प्रारम्भ  होता है। पहला भारतीय समचार-पत्र 1816 ई. में कलकत्ता में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा ‘बंगाल गजट’  नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार-पत्र था, परन्तु यह अंग्रेजी भाषा में छपता था। हिंदी का प्रथम समाचार-पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ था। इसका प्रकाशन 30 मई, 1826 ई. में कलकत्ता से एक साप्ताहिक-पत्र के रूप में हुआ। इसका मुख्य उदेश्य भारतियों को जाग्रत करना तथा भारतियों के हितों की रक्षा करना था। इस प्रकार भारतेंदु के आगमन से पूर्व ही पत्रकारिता का आरम्भ हो चुका था। इस आधार पर 19वीं शताब्दी की हिंदी पत्रकारिता को तीन भागों में बाँटा जा सकता है। 
प्रथम उत्थान (1826-1867): भारतेंदु के उदय से पूर्व पत्र-पत्रिकाओं के विकास का प्रथम दौर पूरा हो चुका था। भारतेंदु युग से पूर्व की पत्र-पत्रकाओं का सीधा सम्बन्ध जन-जागरण से होता था। उस समय जन-जागरण के केंद्र कलकत्ता था। हिंदी  पत्रकारिकता का आरम्भ वहीं से हुआ। इस प्रथम उत्थान में ज्यादातर साप्ताहिक पत्रों का प्रकाशन हुआ। इस काल की पत्र-पत्रिकाओं का उदेश्य जनता में जागरण तथा सुधार की भावना उत्पन्न करना था। साथ ही ये पत्रिकाएँ अपनी-अपनी सीमाओं में अन्याय का प्रतिकार भी कर रही थी। ये पत्रिकाएँ दो या तीन भाषाओं में निकल रही थीं, जिनमें हिंदी भाषा, अपरिष्कृत और अपरिमार्जित थी। 
द्वितीय उत्थान (1868-1885): हिंदी पत्रकारिता के द्वितीय उत्थान में भारतेंदु हरिश्चंद्र का महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने हिंदी भाषा के प्रत्येक अभाव को दूर करने का प्रयास किया। इस काल में काफी हद तक हिंदी भाषा का रूप स्थिर और परिमार्जित हुआ। जागरण सुधार की भावना के प्रसार हेतु गम्भीर लेख लिखे गए। शुद्ध साहित्यक पत्रिकाओं का प्रकाशन भी हुआ। 
तृतीय उत्थान (1886-1900): हिंदी पत्रकारिता के तृतीय उत्थान में 200 से अधिक छोटी-बड़ी हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं। इनमें हिंदी भाषा की शक्ति और लोकप्रिय का बोध होने के साथ-साथ देशव्यापी जन-जागरण की सूचना भी मिलती है।  

1900 ई. के पहले संचार करने के शुरुआती में चिठ्ठी सबसे पुरना जनसंचार है। जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हाथ से लिखे गए पत्राचार का उपयोग किया जाता है। दूसरे शब्दों में, पत्र डाक सेवा कह सकते है। 1792 ई. में, टेलीग्राफ का आविष्कार किया गया था। इसने संदेश को एक घोड़े से ज्यादा लंबी दूरी तक तेजी से पहुंचे जाते थे। यद्यपि टेलीग्राफ संदेश संक्षिप्त थे, वे समाचार और सूचना को व्यक्त करने का एक क्रांतिकारी तरीका थे। 1800 ई. के अंतिम दशक में दो महत्वपूर्ण खोजें हुईं- 1890 में टेलीफोन और 1891 में रेडियो। ये दोनों प्रौद्योगिकियां आज भी उपयोग में हैं। हालांकि आधुनिक समय में इसका उपयोग बहुत ज्यदा होने लगा था, टेलीफोन के आजने से लोगों को अपनी बात को दुसरे व्यक्ति तक  पहुँचने में ज्यदा समय नहीं लगता था।  रेडियो के अविष्कार से मानव जाति को बहुत लाभ हुआ। रेडियो से समाचार, मनोरंजन का एक साधन प्राप्त हुआ। 20वीं शताब्दी में प्रौद्योगिकी बहुत तेजी से बदलने लगी। 1940 ई. के दशक में पहले सुपर कंप्यूटर बनाए जाने के बाद, वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने उन कंप्यूटरों के बीच नेटवर्क बनाने के तरीके विकसित करना शुरू किया। यह बाद में इंटरनेट के जन्म का कारण बना। इंटरनेट के शुरुआती 1960 ई. के दशक में विकसित किया गया था। ईमेल के आदिम रूप भी इस दौरान विकसित किए गए। 70 के दशक तक, नेटवर्किंग प्रौद्योगिकी में सुधार हुआ। 1979 ई. के यूजनेट ने उपयोगकर्ताओं को एक आभासी समाचार पत्र के माध्यम से संवाद करने की अनुमति दी। 1999 ई. में पहली बार ब्लॉगिंग साइटें लोकप्रिय हो गईं, जिससे सोशल मीडिया सनसनी बन गई जो आज भी लोकप्रिय हैं। ब्लॉगिंग के आविष्कार के बाद, सोशल मीडिया ने लोकप्रियता में विस्फोट करना शुरू कर दिया। 
2001 में सिक्स अपार्ट ने मूवेबल टाइप लान्च किया, जिसमें ब्लॉगिंग बहुत आसान और पहले से बहुत सक्षम हो गयी। छोटी-बड़े सभी संस्थान ब्लॉगिंग की अहमियत समझने लगे। 2003 में वर्ल्ड प्रेस के आने से ब्लॉग की तस्वीर ही बदल गयी। इन दोनों के आने से ब्लॉग्गिंग और लोकप्रिय हो गयी। फोटोबुकेट और फ्लिकर जैसी साइटों ने ऑनलाइन इंटरनेट शेयरिंग की सुविधा प्रदान की। ल्वनज्नइम 2005 में सामने आया, जिससे लोगों के बीच संवाद करने और एक दूसरे के साथ साझा करने के लिए पूरी तरह से नया रास्ता बना। 2006 तक, फेसबुक और ट्विटर दोनों दुनिया भर में उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध हो गए। ये साइटें इंटरनेट पर सबसे लोकप्रिय सामाजिक नेटवर्क में से हैं।  ज्नउइसतए ैचवजपलिए थ्वनतेुनंतम और च्पदजमतमेज जैसी अन्य साइटें विशिष्ट सामाजिक नेटवर्किंग को भरने के लिए पॉपअप करने लगीं। इंस्टाग्राम दुनिया भर के लोगों को जोड़ने के लिए दृश्य संचार और सामाजिक संपर्क का उपयोग करता है। यह उपयोगकर्ताओं को फोटो और वीडियो कहानियों को अपलोड करने और साझा करने की अनुमति देता है। इसमें कई फिल्टर हैं जो एक उबाऊ तस्वीर को इंस्टाग्राम-योग्य मास्टरपीस में बदल सकते हैं। 
पत्रकारिता की शुरुआत एक मिशन के साथ हुई थी। किन्तु अब यह व्यापार में परिवतित होता जा रहा है। समाचार मीडिया और मनोरंजन की दुनिया के बीच का अंतर कम होता जा रहा है और कभी-कभी  तो दोनों में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। आज मीडिया एक उद्योग बन गया है, समाचार उपभोग की वस्तु और दर्शक उपभोक्ता। जिसका मकसद अधिकतम मुनाफा कमाना है। इस तरह की बाजार-होड़ में उपभोक्ता को  लुभाने वाले समाचार उत्पाद पेश किए जाने लगे हैं। जिसके कारण उन तमाम वास्तविक समाचारीय घटनाओं की उपेक्षा होने लगी है, जो उपभोक्ता के भीतर ही बसने वाले नागरिक की वास्तविक सुचना आवश्यकताएं थी, जिनके बारे में जानना उसके लिए आवश्यक है। इस दौर में समाचार मीडिया बाजार को हडपने की होड़ में अधिकाधिक लोगों की चाहत पर निर्भर होता जा रहा है। लोगों की जरूरत किनारे की जा रही है। यह स्थिति हमारे लोकतंत्र के लिए एक गंभीर राजनितिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संकट पैदा कर रही है।
न्यू मीडिया संचार प्रौद्योगिकियां हैं जो उपयोगकर्ताओं के साथ-साथ उपयोगकर्ताओं और सामग्री के बीच बातचीत को सक्षम या बढ़ाती हैं। 1990 के दशक के मध्य में, मनोरंजन और शिक्षा के लिए इंटरैक्टिव सीडी-रोम की आमद के लिए बिक्री पिच के हिस्से के रूप में ‘न्यू मीडिया’ वाक्यांश का व्यापक रूप से उपयोग किया जाने लगा। नई मीडिया प्रौद्योगिकियों, जिन्हें कभी-कभी वेब 2.0 के रूप में जाना जाता है, में ब्लॉग, विकी, ऑनलाइन सोशल नेटवर्किंग, आभासी दुनिया और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे वेब-संबंधित संचार उपकरणों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। वाक्यांश ‘न्यू मीडिया’ कम्प्यूटेशनल मीडिया को संदर्भित करता है जो सामग्री को ऑनलाइन और कंप्यूटर के माध्यम से साझा करता है। 
नया मीडिया पुराने मीडिया के बारे में सोचने के नए तरीकों को प्रेरित करता है। मीडिया एक दूसरे को स्पष्ट, रैखिक उत्तराधिकार में प्रतिस्थापित नहीं करता है, बल्कि अंतःसंबंधित फीडबैक लूप के अधिक जटिल नेटवर्क में विकसित होता है। न्यू मीडिया के बारे में जो बात अलग है वह यह है कि वे विशेष रूप से पारंपरिक मीडिया को कैसे नया रूप देते हैं और पुराने मीडिया नए मीडिया की चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को कैसे नया रूप देते हैं। जब तक उनमें ऐसी प्रौद्योगिकियाँ शामिल न हों जो डिजिटल जेनरेटिव या इंटरैक्टिव प्रक्रियाओं को सक्षम बनाती हैं, टेलीविजन कार्यक्रमों, फीचर फिल्मों, पत्रिकाओं और पुस्तकों के प्रसारण को नया मीडिया नहीं माना जाता है।
आज इंटरनेट और सूचना अधिकार ने पत्रकारिता को बहु-लोकप्रिय बना दिया है। आज कोई भी जानकारी पलक झपकते ही प्राप्त की जा सकती है। पत्रकारिता वर्तमान समय मे पहले से अधिक सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी बन गई है। अभिव्यक्ति की आजादी और पत्रकारिता की पहुंच का उपयोग सामाजिक सरोकारों और समाज के भले के लिए हो रहा है।  लेकिन कभी-कभी इसका दुरुपयोग भी होने लगा है। अब स्नैपचैट, फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर का जमाना है। ये सभी ऐसे प्लेटफॉर्म हैं जो अब पत्रकारिता की दुनिया को काफी प्रभावित कर रहे हैं तथा उसे नये तरीके से चला रहे हैं। हालांकि सोशल मीडिया जनता के लिए आसानी से उपलब्ध तो है, पर इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि यह सच्ची पत्रकारिता करता है। ऐसा लगता है कि अब पत्रकारिता उन लोगों के लिए एक साधन बन गई है, जो विनाशकारी सोच के साथ काम करते हैं तथा अपनें काम में गपशप, घोटालें, तथा मनोरंजन जैसी चीजों का समावेश करते हैं और जो गंदगी में लिपटे रहना चाहते हैं। पत्रकारिता मुक्त होनी चाहिए। परन्तु अभी भी अनेक ऐसे प्रकाशन और पत्रकार हैं जो लोगों के लिए सच्ची और प्रामाणिक खबरें तैयार करते हैं। उन्हें दर्शकों के रूप-रंग, उनके रहन-सहन, जाति आदि से कोई फर्क नहीं पड़ता। 
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है। इसने लोकतंत्र में यह महत्वपूर्ण स्थान अपने आप हासिल नहीं किया है, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति पत्रकारिता के दायित्वों के महत्व को देखते हुए समाज ने ही यह दर्जा इसे दिया है। लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब पत्रकारिता सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका का पालन करे। पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए  कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निर्वाह करे। पत्रकारिता मर नहीं रही है, वह अपना स्वरूप बदल रही है अब वह दूसरे आयाम में जा रही है। कल की पत्रकारिता बीत चुकी है, आज की पत्रकारिता चल रही है और विकसित हो रही है और कल की पत्रकारिता अभी बाकी है। 
न्यू मीडिया की दुनिया सिर्फ एक साल में कितनी बदल गई। फेसबुक ट्विटर, यूट्यूब , ब्लॉग और सोशल मीडिया के तमाम दूसरे मंच बीते कई साल से सुर्खियां बटोरते रहे है, लेकिन 2011 जैसे साल पहले कभी नहीं दिखा। इस साल सोशल मीडिया के जरिए न केवल बड़े आन्दोलन परवान चढ़े, बल्कि इसकी ताकत का अहसास दुनिया भर की सरकारों को इस कदर हुआ कि इन मंचों पर पाबंदी के रास्ते खोजे जाने की एक प्रक्रिया शुरू हो गई। भारत के लाखों लोगों ने भी मिशन की क्रांति के दौरान वर्चुअल दुनिया में प्रदर्शनकरियों का समर्थन किया, लेकिन सोशल मीडिया के जरिए परवान चढ़ते आंदोलन की सही भनक उन्हें हजारे के आंदोलन के दौरान मिली। इंटरनेट पर ब्लोगों के माध्यम से अनेक तरह की आलोचनात्मक बहस होती है, उन तमाम तरह के विचारों को अभिव्यक्ति मिलती है जिनकी मुखयधारा का कॉरपोरेट व्यापारिक हितों पर कुठाराघात करने की भी क्षमता होती है। भले ही ब्लॉग एक सीमित तबके तक ही सीमित हो, लेकिन फिर भी ये समाज का एक प्रभावशाली तबका है जो किसी भी समाज और सष्ट्र को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। विकसित देशों में लगभग एक-चौथाई आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है। इसलिए ब्लॉग अभिव्यक्ति के एक में भी ब्लॉग लोकतांत्रिक विमर्श के मानचित्र पर अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करा रहे है।
आज, सोशल नेटवर्किंग साइटों की एक जबरदस्त विविधता है, और उनमें से कई को क्रॉस-पोस्टिंग की अनुमति देने के लिए जोड़ा जा सकता है। अब यह एक ऐसा वातावरण बना गया है। जहां उपयोगकर्ता एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति से बात करने के लिए कई दिन, कई घटों इंतजार किये बिना बात कार सकते है और कोई त्याग किए बिना अधिकतम लोगों तक पहुंच सकते हैं। अगले कुछ वर्षों के बाद व्यक्ति सोशल मीडिया की अदि हो जायंेगे। हम केवल इस बारे में अनुमान लगा सकते हैं कि अगले दशक में या अब से 100 साल बाद भी सोशल मीडिया के प्रभाव से भविष्य क्या हो सकता है, लेकिन यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह तब तक  मौजूद रहेगा जब तक मनुष्य जीवित है। 

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