सवि शर्मा

यादें 

सुनो, क्या तुमने भी किसी पुराने संदूक में 
यादों को सजा रखा है सीप में बंद सा,
पर हर बूँद मोती नहीं बन पाती
वो सड़ीं गली यादें  निकल जब तब 
तुम्हारी रूह की पेरहन पर 
पाँव रख घसीट लेती है 
ना जाने कितने साल पीछे और 
छलनी करती तुम्हें 
तुम्हारी हर साँस पर भारी जैसे  
कोई कर्ज रखा हो 
कितनी रातें छटपटाहट में गुजारते हो 
अधखुली आँख में भीनी हँसी 
जो झाँकती है दुर्ग से 
वो भी सिमट डर जाती है
क्यूँ नहीं उतार देते अपनी आत्मा से ये कर्ज
खोल दो उस संदूक का ताला 
निकल जाने दो उन बेबस यादों को 
मुक्त कर दो, माफ कर दो इनके साथ जुड़ी हर एक तिड़कन
देखो कितना हल्का महसूस होगा 
और माफी माँग लो उन सबसे जिनके दिलों को 
कभी तुमने घायल किया था 
और  दिल के दरवाजे पर दस्तक देती मुस्कराहट का 
स्वागत करो, मुस्कुराओ 
जीवन मुस्कुराने के लिए है, नहीं मिलता दोबारा 
खोल दो गिरह दिल की, आत्मा मुक्त कर दो 
देखो नया व्योम जो प्रतीक्षा में खड़ा है बाँह पसारे 
बढ़ चलो उस ओर!

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