सारिका शर्मा

 स्वार्थ से परिपूर्ण बुद्धिमत्ता

हायब्रीड के पेड़ हो गए,
कंक्रीट के मकान।
मिट्टी को तरस गए, 
अछूता हो गया 
नीला तारों भरा आसमान।

बड़े-बड़े मालों में पड़ने लगे झूले, 
टहनी की अटखेलियाँ हम कैसे भूलें ?
दे-देकर आलिंगन नापा करते थे पेड़ों को,
उछल-उछलकर तोड़ के खा जाते थे फलों को।
मिट्ठू का झूठा अमरूद दवा का काम करता था 
कोयल की कूक से आमों में खुशबू का संचार होता था
सप्तऋषि और चंद्र-तारका गिना करते थे बिन दूरबीन के 
जुगनु की  क्रीड़ा से रंगमहल सजता था
झिंगुरों के स्वर से लय से लय मिलता था  
रात की शीतल चांदनी हर लेती थी अँधियारे को, 
अब तो कृत्रिम उजाले ने हर लिया है कीड़ों का जीवन। 
खोज-खोज के थक गयी हूँ 
ना मिलती है- मिट्टी की खुशबू 
जिसकी सुगंध से मुँह में पानी भर आता था।
कहीं खो गई है- 
रात की हवा में  घुलने वाली रातरानी 
जो मदहोशी की चादर ओढ़े आती थी।

बिन ओस के प्यासे हो गये गमलों में लगे पेड़।
कैसे तृष्णा मिटेगी बिन शरद के चंद्रमा के ? 
बँट गयी है प्राणवायु छोटी-छोटी बोतलों में।
 
पशु-पक्षियों की बुद्धिमत्ता का एहसास 
आज हुआ, 
खाकर फलों को 
विष्टा से बड़े-बड़े बरगद, पीपल को जन्म जिन्होंने दिया। 
स्वार्थ से परिपूर्ण बुद्धिमत्ता 
इंसान ने खूब कमाई 
इसीलिए तो 
अब पिंजरों में 
बंद रहने की सजा उसने पाई।

& sarikasanjeev3@gmail.com

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