घनश्याम शर्मा

 बुजुर्ग बूढ़े हो रहे हैं

दौड़ता समय-चक्र गति-से 
तोड़ता मन-मोह मति से 
नेत्र नम हो ताकते-से, खुद को जैसे खो रहे हैं।
बुजुर्ग बूढ़े हो रहे हैं।
 
वक़्त जाना है सुनिश्चित 
वक़्त उनको भी दो किंचित
जिनको जीवन देते आए, बाट उनकी जोह रहे हैं।
बुजुर्ग बूढ़े हो रहे हैं।
 
कोई सपने अब न बाकी 
हाय! अपने अब न बाकी 
तुमको जो गोदी खिलाए, स्मृति सब संजो रहे हैं।
बुजुर्ग बूढ़े हो रहे हैं।
 
चित्र ही होगा निशानी
झुर्रियों की अब पेशानी
उन चरण लौटो तथापि या कि बस दो पल रहे हैं।
बुजुर्ग बूढ़े हो रहे हैं।
 
 
-केंद्रीय विद्यालय, पठियाल धार, गोपेश्वर, चमोली, उत्तराखंड 246401

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