कैसे उसे पता!
खुद के लिए
कभी मुझे रोना नहीं आया
कभी आंसू नहीं भी निकले
खुद को प्यार किया मैंने चुपके से
एक नारसिसस पेड़ की तरह
जी भर कभी रोया नहीं खुद के लिए!
कभी मैं बहुत जोर-जोर से हँसता था
अगर कोई मेरी लिखने की तारीफ करता तो
इस मन की जो दुर्दशा है क्या कहूँ
शरीर एकदम झुक गया है, हड्डियों से मुड़ गया है
लेकिन कभी भी आँखों से अश्रु नहीं निकले
लगता था आँसूओं को रोक दिया है किसी ने!
आज जब सभी व्यस्त है गाड़ी सजाने में
और आमंत्रण पत्र के शब्द को सजाने में
तब लगता है मेरे कोई शहर में भारी बारिश हो रही है
कैफे में, चाय के अड्डे पर अटके है बहुत लोग
रास्ते में गाड़ी एकसाथ हो गई हैं
जैसे जनसंख्या रुक गई है
यह दृश्य देखकर
समझ नहीं आता कि दिन है या रात
एक दृष्टि से भी नहीं
कुछ दूर पर एक श्मशान घाट है, एक कब्रिस्तान है
इसके पत्थर भी भीग रहे हैं बरसात से
कैसे उसे पता चला इतनी दूर से...!!
-101 योगीसेवा 2, 12 ए सेवाश्रम सोसाइटी, बड़ोदा 390 023
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