तान्या सिंह

अधूरा चुंबन 

एक कवि की पहली किताब में
रूठे दोस्त का जिक्र
उस पर कई नज़्में
और आखरी किताब में
उस किरदार की कहानी का विस्तार,
इन सबके बीच प्रतीक्षा करता हुआ,
दोनों के समय अंतराल में
यात्रा करता है- अधूरा चुंबन!

गहरा प्रेम करती स्त्री
उसके प्रेम को कामवासना में
तौलता हुआ पुरुष,
दोनों अलग ग्रहों के निवासी
फिर उनका जिस्मानी मिलन,
ऐसी परिस्थितियों के बीच
तैरता है- अधूरा चुंबन

पहले चुंबन के बाद
मिले कई चुंबन
लेकिन पहलेपन का
वो अहसास शेष नहीं।
फिर भी संघर्ष में डूबते प्रेम को
निचोड़कर ओढ़ लेनाए
तब देह पर मैल की तरह
उपस्थित रहता है- अधूरा चुंबन!

जिया हुआ प्रेम
जो अमृता ने साहिर से
इमरोज ने अमृता से किया
वो संतृप्ति नहीं थी
वहां न तृप्त होने की ख्वाहिश थी
न दर्द बढ़ने की गुंजाइश 
वहीं सूखकर अमर हुआ- अधूरा चुंबन!


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