हिंदी साहित्य के परिदृश्य में विश्वसनीय उपस्थिति के साथ डॉ. बृजेंद्र कुमार अग्निहोत्री सार्थक रचनाकार के रूप में स्वीकार किए जाते हैं। ‘यादें’, ‘पूजाग्नि’ और ‘ख़्वाहिशें’ में संग्रहीत इनकी कविताएं जनसामान्य के हृदय को संवेदित कर एकाकार कर लेने में समर्थ हैं। प्रबुद्ध पाठक-वर्ग डॉ. अग्निहोत्री को ‘मधुराक्षर’ साहित्यिक पत्रिका और ‘आखिर लिखना पड़ा’ साप्ताहिक पत्र के संपादक के रूप में भी जानता है। भाषा-संस्कार के घनत्व, जीवंत प्रांजलता और अद्भुत संप्रेषणीयता के धनी डॉ. अग्निहोत्री साहित्य को जीवन से संबद्ध कर प्रस्तुत करते हैं। शोधार्थियों-विद्यार्थियों के मध्य विशेष लोकप्रिय शोधपरक आलोचनात्मक कृति ‘प्रयाग की साहित्यिक पत्रकारिता’ को विद्वान आलोचकों के द्वारा विशेष सराहना मिली। हिंदी साहित्येतिहास को सरल-सहज रूप में प्रस्तुत करती इनकी कृति ‘हिंदी साहित्य का निकष’ इन्हें साहित्येतिहास के मर्मज्ञ विद्वान के रूप में स्थापित करती है। मानवाधिकारों को व्याख्यायित करती इनकी कृति ‘विकास का आधार: मानवाधिकार’ विविध शैक्षणिक संस्थानों में संदर्भ-ग्रंथ के रूप में प्रयुक्त की जा रही है। इनकी संपादित कृतियों में ‘शोध प्रतिमान’, ‘शोध-दृष्टि’, ‘फैसले गढ़े जाते हैं’, ‘अर्द्ध सत्य तुम’, ‘अजस्र स्रोत तुम’ और ‘हिंदी हैं हम’ आदि के नाम उल्लेखनीय है।
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