-1-
हर रस्ते की मंजिल है क्या
अंबर का भी साहिल है क्या
तुझको पाकर खोया खुद को
ये ही मेरा हासिल है क्या
तू अब पास नहीं आता है
मुझसे मिलना मुश्किल है क्या
कोई तो है तेरा कातिल
तू खुद अपना कातिल है क्या
कब से घूर रहा है मुझको
आईना कुछ गाफिल है क्या
एक नशा है मुझ पर तारी
तू मुझमें अब दाखिल है क्या!
-2-
वो जो इतना चुप-चुप-सा है
आखिर उसको कहना क्या है
मुझको जो किरदार मिला है
तुझको ही हर बार जिया है
किसकी बोली बोल रहा है
उस पर ये किसका कब्जा है
अब वो मुझको समझाएगा
मैंने जो कुछ समझाया है
प्रश्न सरीखा है उत्तर भी
क्या बतलाऊँ उत्तर क्या है
मुझको देखे जाता है वो
जाने मुझमें क्या देखा है!
-3-
आज तक जो कुछ कहा
क्या कभी खुद भी सुना।
जन्म से मुझमें रहा
मैं नहीं तो कौन था!
मैं फसाना क्यों हुआ
काश तू ये जानता !
जिन्दगी-भर का सिला
सिर्फ तू हासिल रहा !
वो जो नजरों में रहा
काश मुझको दीखता!
मैं किसी का क्यों हुआ
ये गिला है आपका!
था जमाना साथ में
साथ में जब तू न था!
-4-
क्या-क्या सोचा था न हुआ
मिलकर भी मिलना न हुआ।
वो मेरा चेहरा न हुआ
उससे ये रिश्ता न हुआ।
बरसों से जो मुझमें है
क्यों मेरा अपना न हुआ!
बोलूँ उसकी भाषा क्यों
मैं उसका तोता न हुआ।
मैंने सिर्फ पढ़ा है वो
खत में जो लिक्खा न हुआ।
-विज्ञान व्रत, एन-138, सैक्टर-25 , नोएडा 201301 (मो. 9810224571)
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