डॉ. रंजना जायसवाल

कोरोना बनाम शादी

वसंत की गुलाबी ठंड बसंती बयार बह रही थी...खेत-खलिहान से लेकर बाग-बगीचे भी फूलों से लदे पड़े थे। प्रकृति की तरह मन भी पीताम्बरी हो रहा था। इस खुशगवार माहौल में न जाने कितने लड़के और लड़कियों की शादियाँ भी तय हुई। हमारे पड़ोसी मिश्रा जी ने लगे हाथ बसन्त पंचमी के शुभ दिन अपनी बिटिया की शादी तय कर दी। सब कुछ इतना जल्दी-जल्दी हुआ कि मिश्रा जी की बहिन और बहनोई इस शुभ मौके पर भी न पहुँच सके। खैर शादी में बुलाने का लॉलीपॉप दिखाकर किसी तरह उन्हें शांत किया गया।
इस खुशी के माहौल में कही दूर देश में... लोग विचित्र बीमारी कोरोना से जूझ रहे थे।हमारी जिंदगी में कुछ भी नहीं बदल रहा था पर कुछ था जो जल्दी ही बदलने वाला था।जल्दी ही वो समय आने वाला था कि हम जहाँ थे वही के रह जाने वाले थे। कदमताल तो करेंगे लेकिन एक कदम आगे तो चार कदम पीछे। देखते-देखते चीन के इस कोरोना वायरस ने दबे पाँव हमारे देश में भी अपने पैर पसार लिए...अब होना क्या था शादी-विवाह तो क्या जिंदगी भी ठप।जो जहाँ था वही का होकर रह गया। मिश्रा जी परेशान बिटिया की शादी सर पर है३ अब सब काम कैसे होगा।
दुनिया का हर लड़का और लड़की अपने विवाह को लेकर कुछ सपने संजोता ही है, हजारों ख्वाहिशें होती है उनके मन में इस खास दिन के लिए  पर... मिश्रा जी की बिटिया का सपना इस कोरोना वायरस ने चकनाचूर कर दिया।
बिटिया के ससुराल वाले नहा-धोकर पीछे पड़े थे- ‘मिश्रा जी! शादी-ब्याह का मामला है देख लीजिए। देर करने से क्या फायदा।’
बिटिया के होने वाली ससुर की बात को सुनकर मिश्राइन भड़क गई- ‘अनुरोध कर रहे हैं कि धमका रहे हैं!’
मिश्रा जी ने मिश्राइन को समझाने की कोशिश की- ‘अरे भाग्यवान! भाई माना कि शादी सात जन्मों का बंधन है...पर ये जो नौ महीने से बिना बात के हम बन्धन में फँसे पड़े हैं उसका क्या...एक महामारी में दूसरी महामारी।’
मिश्राइन तो पहले से ही भड़की हुई थी। मिश्रा जी की बात सुनकर और भी भड़क गई- ‘क्या कह रहे हो मिश्रा जी! तुम तो उम्र से पहले ही बूढ़ा गए हो। शादी दो आत्माओं का मिलन, दो परिवारों का मिलन है और तुम उस मुये कोरोना से तुलना कर रहे हो।’
मामला बिगड़ते देख मिश्रा जी के हाथ-पाँव फूल गए, मिश्राइन जी के तेवर कुछ ठीक नहीं लग रहे थे। मिश्रा जी ने बात संभालते हुए कहा- ‘अरे मिश्राइन! काहे अपना बी पी बढ़ा रही हो। तुम ही बताओ शादी कि ऐसी क्या जल्दी पड़ी थी, अगर एक साल देर से ही हो तो कौन सा आकाशगंगा में से नौ ग्रह में से एक कम हो जायेगा या...कौन सा बच्चों की जिंदगी की पोथी में से एक पुण्य कम लिखने से रह जायेगा। अलबते, बाप के टेलीफोन का बिल जरूर बढ़ने लगा है।’
अब मिश्रा जी बेचारे क्या कहते उनकी लाडली अपने सोना, बेबी, हन्नी से रोज दो-दो घण्टे फोनियाती है। कोरोना के चक्कर में न जाने कितनी पापा की परियों ने घर में आफत जरूर मचा रखी है। ऊपर से कोई न कोई रोना लेकर वो रोज हाजिर ही रहती है- ‘डैड देखो न सोच रही था कि अपनी शादी में जीरो फिगर बनाकर अनीश मेहरोत्रा की डिजाइनर गाउन पहनूँगी.. पर मम्मी के चक्कर में सारा फिगर ही बर्बाद हो गया।’
मिश्रा जी सोचने लगे, एक तो इन बच्चों का ये समझ में नही आता, जीते जी हँसते-खेलते बाप को मरा घोषित करने का ये कौन सा तरीका है। बेचारी माँ कोरोना के चक्कर में कांता बाई बनी टहल रही थी...पर बिटिया ने खड़े-खड़े धुल दिया। मम्मी की भी क्या गलती ...सोची बिटिया चार दिन की मेहमान फिर तो अपने घर ही जाना है पता नहीं क्या मिले क्या नहीं३ ये भारतीय माँओ का समझ नहीं आता बेटी का ब्याह करते वक्त ऐसी परेशान रहती है जैसे बिटिया को ससुराल नहीं सियाचिन बार्डर भेज रही हो। रूठी बिटियों ने मान-मनुव्वल के चक्कर में एक-दो डिजाइनर कपड़े इसी बहाने झटक लिए...
मिश्रा जी एक दिन यूँ ही खलीहर बैठे थे। बैठे-बैठे सोचे चलो भई एलबम ही देखकर पुरानी यादें ताजा कर ली जाए...न जाने क्यों एक फोटो पर आकर उनकी आँखें टिक गई। मिश्राइन के माता-पिता के साथ कि थी जब पूरा परिवार हरिद्वार घूमने गए थे। कोरोना काल और लॉक डाउन सच पूछिए जब भी ये नाम सुनते हैं तो सास-ससुर की जोड़ी सी फीलिंग आने लगती है।मिश्रा जी के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई, मिश्राइन बड़े गर्व से सबको बताती थी कि उनकी अम्मा बारह  महीनों चाहे कितना भी जाड़ा हो ,गर्मी पड़े ओला गिरे ...पर उनका नियम आखिरी सांस तक नहीं टूटा। अब मिश्रा जी क्या कहते कि उनका अम्मा कितना पंचायती है। किस की बहू सास को खाना नहीं पूछती, किसी का बेटा बड़ी कम्पनी में नौकरी पा गया...इन सब की जानकारी तो नदी स्नान से पहले, दौरान और बाद कि गम्भीर चर्चा से ही हो सकती थी। पूजा की पूजा और जानकारी की जानकारी...पर इस कोरोना के चक्कर में पूजा स्थल भी बन्द। ग्रहण के समय तो पूजा स्थलों को बंद होते देखा और सुना था पर हमारे पालनहार हमारे तारणहार भी कन्फ्यूजन में थे ...भई ये कौन सा ग्रहण है जो खत्म होने का नाम ही ले रहा।
हमारे नेटवर्क ने अभी-अभी जानकारी दी कि एक दिन सभी धर्मों के माईं -बाप ने उस दौरान एक आकस्मिक बैठक भी कर ली।
‘अचानक से भूलोक पर क्या हो गया ...सबके दुख,  इच्छाये,सपने अचानक से मिट गए अब तो हमारे चौखट पर कोई माथा टेकने भी नहीं आता...कोई फरियादी नहीं..कोई दुखियारी नहीं।’
अब धरतीवासियों के लिए ही कोरोना एक नया शब्द था तो अपने पालनहारों को क्या समझाते। भक्तों की राह तकते-तकते उनकी आँखें भी पथरा गई...पर ये मुआ कोरोना नहीं गया।
कहते हैं गम्भीर विषयों पर विचार करना हो...गुसलखाने में घुस लो, कोई डिस्टर्ब करने वाला भी नहीं। मिश्राइन के प्रकोप से बचने के लिए मिश्रा जी ने गुसलखाने की राह पकड़ ली।मिश्रा जी सोच में पड़ गए वैसे मिश्राइन कल रात गलत तो नहीं कह रही थी कि गाँव-देहात में न सेनेटाइजर और न ही हाइजीन का चक्कर मास्क तो बहुत दूर की बात है, उनको तो कोरोना-फरोना नहीं पकड़ रहा। क्या कोरोना शहर में सफाई पसंद सुफेस्टी केटेड लोगो को ही ढूंढ-ढूंढ कर पकड़ रहा है।
हमारे यहाँ एक ग्रामीण अंचलों में मेहमानों के लिए एक कहावत है   ...पहले दिन पहुना (मेहमान), दूसरे दिन ठेहुना (घुटना), तीसरे दिन केहुना (कोई नहीं)...पर ये मेहमान न जाने किस श्रेणी का है जो निर्लज्जों की तरह टिक ही गया है, जाने का नाम ही नहीं ले रहा...पर एक बात तो माननी ही पड़ेगी जिस सर्दी-जुखाम को कभी समाज में और बीमारियों की तरह इज्जत नहीं मिली थी ...इस कोरोना ने ऐसी इज्जत दिलायी कि पूछिये मत। कभी भरी महफिल छींक और खाँसकर तो देखिए...लोग रास्ता खुद ही खाली कर देते हैं। बड़ी वी.आई.पी. वाली फीलिंग आती है। 
इस दौरान हमारे वो... बड़े वाले नेता जी...वही जो कुर्ते की मैचिंग सदरी पहनते हैं... बिना नागा आते और लॉक डाउन का एक बम गिराकर चल देते। वैसे घर मे हमारी लक्ष्मियाँ समय-समय बड़े स्वादिष्ट पकवान परोस रही थी पर जिन कुल देवताओं और कुल देवियों की इस दौरान शादियाँ होनी थी वो बेचारे त्रिशंकु बनकर रह गए। समधी साहब का बार-बार फोन आ रहा था, मिश्रा जी अजीब असमंजस में थे...करे तो क्या करे।
एक तो इस साल लग्न कम... ऊपर से कोरोना, बची-खुची कसर सरकार ने पूरी कर दी। शादी-विवाह जैसे समारोह में पहले पचास,फिर सौ फिर दो सौ और फिर से सौ की संख्या कर दी। सरकार का भी समझ नहीं आता शादी-विवाह के लिए सौ और धरना प्रदर्शन के लिए नो लिमिट...भई वाह। मिश्रा जी एक दिन बड़े दुखी होकर बोले,
‘हमारे यहाँ मोहल्ले में अगर कोई जोर से छींक दे तो पचास लोग तो ऐसे ही खड़े हो जाये।’ 
कह तो सही ही रहे थे। सच बता रहे बड़ी अजीब सी फीलिंग आती थी...पचास वाले में तो हम होंगे नहीं पर कम से कम सौ वाले में तो होंगे ही...पर अब ये पता नहीं कि हम एक नम्बर पर होंगे या निन्यानबे। ये संख्या का सवाल ट्रिग्नोमेट्री के सवाल से भी ज्यादा कठिन हो गया था।
मिश्रा जी का धैर्य की सीमा जवाब देने लगी थी- ‘‘भाभी जी!!!..अब इस सौ की संख्या में हलवाई, वेटर, नाऊ, पंडित जी साज-सज्जा और बैंड बाजा वाले भी होंगे कि नहीं ...ये पता लगाने के लिए भी आदमी दौड़ाना पड़ता है।’
हम तो पहले से ही दुखी और असमंजस की स्थिति में थे कि मिश्रा जी की बिटिया की शादी में हम को बुलाया भी जाएगा कि नहीं। ऊपर से लोगों ने भी इस मौके पर आग में घी डालने का पूरा काम किया... हमारे दूर के मित्र ने सोशल नेटवर्क पर एक सन्देश डाला...ईश्वर की असीम अनुकम्पा जगतजननी माँ विंध्यवासिनी के आशीर्वाद और मेरे पिछले जन्म के पुण्य कर्मों के कारण तीन शादियों के मेहमान सूची में मेरा नाम टॉप पचास में आ गया है। सच बता रहे ऐसी फीलिंग आ रही थी कि बस प्रशासनिक सेवा की प्रवेश परीक्षा का अंतिम चरण में बस हमारा चयन होते-होते रह गया।जिन लोगों को कार्ड मिला वो तो चौड़े हुए घूम रहे थे पर जिन्हें नहीं मिला...सस्ते में निपट लिए, पैसा बच गया...जैसे संवादो से कोरोना को मन ही मन कोसते रहे।
एक दिन दूध की थालियाँ खरीदते वक्त मिश्रा जी हमारे पतिदेव से टकरा गए। दुआ-सलाम के बाद बिटिया की शादी का भी जिक्र छिड़ गया।
‘मिश्रा जी!!!...बिटिया की शादी की तैयारी कैसी चल रही है। अब तो सरकार ने भी लिमिट कर दी है,चलिए अच्छा है एक तो कमाई-धमाई नहीं है, इसी बहाने कुछ पैसा तो बचेगा।’
हमारे पतिदेव भी बोलने से पहले एक बार भी नहीं सोचते, मिश्रा जी तो पहले से ही जले बैठे थे।
‘कितना पैसा बचा ये तो लड़की वाले ही जानते हैं... जानते हैं जायसवाल जी...लड़के वाले भी कम नहीं है बोले- भाईसाहब तीन सौ बाराती की बात हुई, अब तो सरकार भी पाबंदी लगा दी है। बजट तो आपका पहले से ही तय था...ऐसा कीजिए अपनी बिटिया के नाम की एफ डी कर दीजिए।’
बिटिया की विदाई से पहले ही मिश्रा जी की आँखों से आँसू छलक आये। आखिर ये कैसे रिश्तेदार थे जो रिश्ता जुड़ने से पहले ही मोलभाव कर रहे थे, मिश्रा जी का गुस्सा जायज था...पर हमारा गुस्सा किसी को नहीं दिख रहा था।
अंत तक असमंजस की स्थिति बनी ही रही, गुस्सा तो बहुत आ रहा था, बेइज्जती भी बाल्टी भर-भर हो रही थी.. पर कर भी क्या सकते थे। हम तो निन्यानबे तो क्या एक सौ निन्यानबे नम्बर पर भी दूर-दूर तक नहीं थे। लोगोटियाँ यार, चड्डी-बड्डी, खाटी का दोस्त और दूसरा घर जैसी उपाधियों का लॉलीपॉप दिखाने वाले रिश्ते हाथ में लॉलीपॉप की डंडी पकड़ाकर कही गायब हो गए थे।
मिश्रा जी की परेशानी बढ़ती ही जा रही थी। ट्रेन, बस और उड़नखटोला सब बन्द, अब करे तो करे क्या...। मिश्रा जी के दूर के फूफा जी अचानक से कुछ ज्यादा ही दूर नजर आने लगे। फूफा जी मन ही मन कुलबुलाये भी बहुत थे, महीनों से तैयारी कर रखी थी। एक दिन वो मिश्रा जी पर फोन पर ही बिफर पड़े- ‘क्या अब बड़े-बूढ़ो के आशीर्वाद के बिना बहू-बेटियाँ विदा होगी।’
पर कर भी क्या सकते थे। मिश्रा जी बीस साल पहले बनवाई उनकी शेरवानी की कल्पना कर-कर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे, पहननी तो उनको वही शेरवानी ही थी फिर काहे की तैयारी।
रिश्तेदारों को कार्ड सबसे पहले चाहिए होता है पर काम की उम्मीद उनसे न करो। धेले भर का भी काम उनसे न होगा...और फुला-फुली अलग से।
‘अपनी भौजाईयों से हा-हा-ही-ही करने की फुर्सत मिले तब न सेवा-सत्कार करेगी। बुलाने को तो बुला लिया पर बताओ...चाय नौ-नौ बजे तक मिल रही। चाय के बिना प्रेशर नहीं बनता, अब इनको कौन समझाए।’
इस कोरोना ने ऐसे नखरीले रिश्तेदारों से कुछ हद तक बचा भी लिया। लॉकडाउन और शादी...ऐसा लगता है जैसे किसी फिल्म का टाइटल हो- ‘मैं अनाड़ी तू खिलाड़ी!’ ...मिश्रा जी को इस कोरोना ने कुछ ऐसा ही छकाया था। बिटिया की शादी सर पर कार्ड कैसे छापेंगे और छप भी गए तो बटेंगे कैसे! हाथ में दो किलो मिठाई के साथ बहन-बेटियों के दरवाजे पर कार्ड पहुँचने- पहुँचाने का रिवाज ही खत्म कर दिया इस कोरोना ने,
मिश्रा जी का लड़का थोड़ा-थोड़ा यो-यो टाइप था...घर के इस इकलौते कुल दीपक,चिराग का भी क्या कहना ...लंबे और बिखरे हुए बाल हफ्तों से मैली टी शर्ट और बरमूडा लादे... जिनका नहाना, धोना, खाना, पीना सब सोशल नेटवर्किंग पर ही होता है उनकी उंगलियों ने फटाफट एप्प डाऊनलोड किया और फटाफट कार्ड हाजिर...कोरोना काल ने सोशल नेटवर्किंग के नाजुक कंधों पर इतना बोझ लाद दिया कि पूछिये ही मत... मिश्राइन अपने नौनिहाल की बलायें लेती नहीं थक रही थी।

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‘देख लो जी बार-बार कहते रहते हो ये दिन भर  लैपटॉप पर जोक जैसा चिपका रहता है। देखो कितना पैसा बचा लिया आपका...आप तो बस।’
मिश्रा जी का सीना भी गर्व से 32 से 42 इंच का हो जाता ...इस लॉक डाउन में कुछ कमाई -धमाई तो है नहीं चलो कुछ तो बचे पर मिश्रा जी फिर से सोच में पड़ गए कि जिस देश में कार्ड भेज दिया तो किसके हाथ भेजा, स्टाफ आया था कि खुद...स्टाफ आया था तो डायलॉग ये कि नौकर-चाकर के हाथ भेजवायेंगे तब थोड़ी जाएंगे। खुद आये तो कितनी बार मनुहार किया और आने वाले ने गलती से अपनी व्यस्तता का रोना रो दिया तो दाँत निपोर कर कहेंगे- अरे घर की ही बात थी कार्ड-शार्ड की फारमेलटी में क्यों पड़ गए...बस एक बार फोन घुमा दिए होते। इन्हीं लोगों को सिर्फ फोन कर दो तो कहते हैं दस दिन पहले एक बार फोन करके सूचित तो किए थे...बिना कार्ड के भला कौन जायेगा।
अपने बाल-गोपाल द्वारा बनाये गए निमंत्रण पत्र को सो कॉल्ड मेहमानों को मिश्रा जी ने बड़े शान से चिपका तो दिया पर भरम की स्थिति अब भी बनी हुई थी,कि बिना मान-मनुहार और देशी घी की मिठाई के डिब्बों के बिना रेडीमेड कार्ड भेजने भर मात्र से कोई आएगा भी या नहीं!
सच पूछिए कभी-कभी बड़ी दया आती है जिन रिश्तेदारों की संख्या पचास और सौ के बाद आती थी...जीवनभर जो रिश्तेदार फूटी आँख न सुहाते थे उन्हें मजबूरी ही में ही सही निपटाने के चक्कर में ही पचास और सौ की संख्या तो चुटकियों में पार हो जाती है। अब इन्हें बुला भी लिया तो पहले कोरोना की जांच कराओ३ अगर गलती से एक-आध कोरोना पॉजिटिव निकल आये तो हो गई छुट्टी..
कोरोना की डगर इतनी सरल नहीं थी, उड़नखटोले से आये मेहमानों के हाथों पर एक ठप्पा लगा दिया गया और उन्हें अज्ञातवास मेरा मतलब कोरोनटाइन कर दिया गया, बड़े-बड़े शहरों में डिस्को थेक और पब में घुसने से पहले हर महानुभावों के हाथों पर भी कुछ ऐसे ही ठप्पे लगाए जाते हैं। मिश्रा जी की छोटी बिटिया अपने ताऊ जी की बड़ी लाड़ली थी। वो तो बस इसी बात पर फैल गई।
‘पापा!!!...ताऊ जी के हाथ पर वैसा ही ठप्पे के निशान हैं जैसा भैया के हाथ पर भी कभी-कभी देखने को मिल जाता है। आप ने ताऊ जी को 15 दिन अलग ठहरने की व्यवस्था कर दी है पर भइया के लिए कभी नहीं सोचा!’
अब मुँह छुपाने की बारी घर के चिराग की थी। मिश्रा जी जलती निगाहों से अपने कुल दीपक को देख रहे थे और आँखों ही आँखों मे ये पूछ रहे थे, तो ये हो रही है कंबाइन स्टडी...। 
शादियों में जनवासे का चलन तो सुना था पर जनवासे का नया नाम कोरोनटाईन होगा ये नहीं सोचा था...मिश्रा जी भी अब क्या कर सकते थे।सरकार खुद ही कन्फ्यूज हो गई है, रोज कोई न कोई एडवाइजरी जारी हो जाती है और दूसरे दिन अखबारों में मोटी-मोटी लाइनों में लिखा होता है३ सरकार के दिशा-निर्देश... शादी-विवाह के लिए नई गाइडलाइंस जारी शादी-विवाह से जुड़े हुए लोगों के होंगे कोविड टेस्ट...बैंड वालों, कैटरर्स, डेकोरेशन,डी जे और मेहमानों के भी होंगे कोविड टेस्ट।
सरकार तो सरकार लोगों का भी समझ नहीं आ रहा निमंत्रण पत्र पर कुछ ऐसा लिखते हैं कि पूछो ही मत ... श्रीमती एवम श्रीमान प्रकाश चन्द्र, सपरिवार३ नोट-दो के बाद जितने भी आये वो खुद ही देख ले...अरे भाई बुला रहे हो या डरा रहे हो। एक महाशय तो और भी समझदार निकले कार्ड के नीचे एक लाइन और भी चिपका दिए- ‘स्टे होम, स्टे सेफ’ ...सुरक्षित तो हम पहले भी थे पर आप बुला रहे हो या मना कर रहे, पहले ये तो तय कर लो। शायद ऐसी ही गलतफहमी मिश्रा जी के घनिष्ठ मित्र को भी गई और उन्होंने अपने समस्या के निवारण के लिए मिश्रा जी को फोन घुमा दिए, हम छत पर कपड़े सुखाने गए थे ...मिश्रा जी किसी से जोर-जोर से बतिया रहे थे
‘शुक्ला जी!!...बिटिया की शादी में आ रहे हैं न आप?’
‘भाई साहब!!!..आने को तो आ जाये पर आपका परिवार ही इतना लंबा-चौड़ा है सौ तो ऐसे ही समा जाएंगे।’
सच बता रहे हैं लोग जेम्स बांड 007 के भी अब्बा हो गये...क्या योजना बना रहे हैं। मिश्रा जी के चेहरे पर एक बार फिर से कुटिल मुस्कान खिल गई- ‘‘भाईसाहब आप ,बिल्कुल चिंता न करिए...सब इंतजाम हो गया   ...पुलिस की चौकिंग बड़ी तगड़ी है पर हम भी कोई कम खिलाड़ी थोड़ी है। हमें भी डर और चिंता है कि बिटिया की डोली उठने से पहले पुलिस वाले हमें ही न उठा ले जाये। आप ऐसा कीजिये भाभी जी और एक बच्चे को...पहले भेज दीजिएगा जब तक वो खा-पी कर निपटते है तब तक आप गाड़ी में बैठे रहियेगा...और जब भाभी जी बच्चे के साथ खाकर आ जाये तब आप धावा बोल देना...प्रॉब्लम सॉल्व।’
सच बता रहे मिश्रा जी की योजना को सुनकर उनके चरण स्पर्श करने का मन कर गया। छत से उनका चेहरा तो नहीं दिख रहा था पर उनकी प्रकाशपुंज युक्त अलौकिक छवि आँखों के सामने से गुजर गयी। 
कल ही तो मिश्रा जी बड़े व्यथित होकर कह रहे थे- ‘भाभी जी!!... शादी की परमिशन लेने जाओ बाबू साहब लोग दुनिया भर के नियम-कानून की दुहाई देने लगते हैं। आखिर उन्हें भी तो ऊपर वाले को मेरा मतलब अपने से बड़े बाबू साहब लोगों को भी तो जवाब देना होता है। कुछ भी कर लो कित्तों सर पटक लो परमिशन तो सौ मेहमानों तक की ही मिलती है.... और इन्हीं बाबू साहब लोग से धरना प्रदर्शन की परमिशन लो तो अनलिमिटेड लोग आ सकते हैं....’
हम तो बचपन से ही बहुत भावुक किस्म के इंसान रहे हैं लोगों का दुःख हमसे देखा नहीं जाता। चलते-चलते मिश्रा जी को एक मशवरा दे डाले- ‘भाईसाहब!!...अगर सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेड़ी कर देनी चाहिए.. ये कहावत यूँ ही नहीं बनी। आप एक परमिशन पत्र लिखिए... और उस परमिशन पत्र में अपने मनभावों को कुछ इस तरह से प्रकट कर लिखे..   

सेवा में,
थानेदार साहब महोदय,

विषय: दुल्हन लाने के लिए धरना प्रदर्शन करने की अनुमति के सम्बंध में,

विनम्र निवेदन है कि मेरी सगाई हुए तीन माह बीत चुके हैं, और मेरे होने वाले ससुर मेरी होने वाली पत्नी से दिनांक 20.12.2020 को मिलने को बोल रहे थे। लेकिन अचानक आज चार दिन पहले ही वो अपने वायदे से मुकुर गए। ऐसी परिस्थिति में मुझे अपनी भावी जीवनसंगिनी के लिए धरना प्रदर्शन करना है। इस शुभ कार्य को सम्पादित करने के लिए मैंने ‘आनन्दम्’ माँगलिक रिसोर्ट स्थान निश्चित किया है।इस अवसर पर वहाँ मैं, मेरे घर वाले तथा कुछ सगे-संबंधी और मित्र भी प्रदर्शन में मेरा साथ देंगे।
अतः आप मुझे दिनांक 20.12.2020 को धरना प्रदर्शन करने की अनुमति प्रदान करें....मैंने इस आवेदन पत्र की एक प्रति तहसीलदार साहब को भी प्रेषित कर दी है।

संभ्रांत नागरिक  

‘उम्मीद करती हूँ इस पत्र से कुछ काम बन जाये।’
पर मिश्रा जी परेशानियां सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती ही जा रही थी- ‘क्या बताए भाभी जी!!...कोरोना ने घर-परिवार सब की जान आफत में डाल दी है। कोरोना के चक्कर में हमारी अम्मा तो यही सोच-सोच दुबली हुई जा रही थी घर की पहली शादी है दुनिया भर के लोगों को आज तक व्यवहार दिए हैं ...जब अपने घर की शादी पड़ी, लोगों की व्यवहार लौटाने की बारी आई... तो किसी को बुला ही नहीं सकते। जौनपुर वाली जीजी की लड़की की शादी में दो साड़ी, एक झुमका और पाँव पूजन के समय स्टील का ड्रम दिए थे और खिचड़ी खाने के समय लड़के को पाँच सौ एक का लिफाफा... शादी बीतने के बाद कौन देता...जब पूड़ी नहीं खाये तो काहे का न्योता...कह तो अम्मा सही ही रही थी।’
मिश्रा जी भी अपनी जगह ठीक ही थे, एक तो कोरोना काल मे ढेले भर की कमाई नहीं.. ऊपर से शादी। रिश्तेदारों के यहाँ बढ़-बढ़ कर न्योता दिया है किसी के यहाँ अंगूठी, किसी के यहाँ वाशिंग मशीन तो किसी के बक्सा- जब कोई आयेगा ही नहीं तो वो भला क्या देगा...इस महामारी के चक्कर में वापसी मिलने की रही-सही उम्मीद भी जाती रही!
खैर छोड़िए... हमें अभी तक मिश्रा जी की बिटिया की शादी का न्योता नहीं मिला था, पर हमने भी उम्मीद नहीं छोड़ी थी। इन बीते महीनों में हमारे कान बेसुरे ढोल पर दो ढक्कन चढ़ाए नागिन डांस करते जीजा और फूफा लोग के नृत्य कला प्रदर्शन को देखने के लिए बुरी तरह कुलबुला रहे थे...कपड़ों की अलमारी चीख-चीख आवाज दे रही थी ...अम्मा जिंदा हो न कि निकल ली। इतना मजबूर तो हम जीवन में कभी भी न हुए थे। गिनती का महत्व जीवन मे इतना होगा कभी सोचा न था।
शादी खुद एक महामारी से कम है क्या, जिसकी वैक्सीन आज तक नहीं बनी और न बनेगी। खैर जिनकी न हुई वो भी चख ही ले। अकेले हम ही क्यों भुगत-भोगी रहे। वैसे भी हम बचपन से ही उसूलों पर चलने वाले हैं..हमारा तो जीवन का एक ही उसूल है ...हम तो डूबे है सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे। 
जिन्दगी भर बी पॉजिटिव का आलाप करने वाले लोग कोरोना पॉजिटिव का नाम सुनते ही गधे का सर से सींग की तरह गायब हो जाते है। हमारे घर की पीछे वाली गली में पोपले मुँह वाली अम्माजी रहती है। मुहल्ले में किसी के घर भी शादी हो अम्मा जी न आये, हो ही नहीं सकता। कदम-कदम पर नियम कानून बताने वाली पोपले मुँह वाली अम्मा जी भी आजकल मुँह पर ताला मार कर बैठी है। कही पहले की तरह कोई कह न दे- ‘अम्मा जी...आप भी चले चलो आखिर कौन बतायेगा ये दुनिया भर के रीति-रिवाज!’
पर अम्मा जी टस से मस न हुई- ‘हम कही न जाएंगे...कुछ हो-हवा गया तब...अभी उम्र ही क्या है हमारी...अभी तो दुनिया भी देखनी है।’
अब अम्मा जी को कौन बताए कि- ‘अम्मा जी कब्र में पैर लटकाये बैठी हो... दोनों हाथ-पैर की रेखायें भी गिन ले तो भी कम पड़ जाए। खैर भगवान सबकी उम्र लम्बी करें।’
मिश्रा जी की बिटिया की शादी पास आती जा रही थी और हमारी उम्मीद का दामन दूर होता जा रहा था। शादी-विवाह में लड़के-लड़कियों को मैचिंग लहंगा, दुपट्टा, ब्लाउज, जूती, पर्स, पगड़ी, शेरवानी की चिंता करनी पड़ती थी पर अब तो एक और चलन प्रारम्भ हो गया...मैचिंग मास्क। हमारे ड्रेस डिजाइनर भाई लोग भी परेशान, उनकी अनदेखी बचत में भी लोग सेंध लगाने को खड़े हैं३ नाश हो मुये कोरोना का। एक तो मुश्किल से कुछ कमाई-धमाई शुरू हुई तो वहाँ भी! 
आखिर वो दिन भी आ ही गया ...जिसका इंतजार हर पिता को होता है। बिजली के बल्ब और फूलों की लड़ियों से मिश्रा जी का घर दूर से ही चमक रहा था। मास्क पहने बराती ऐसे लग रहे थे... मानो वो बरात में नहीं गाँव लूटने आये हो। सच पूछिए तो मास्क भी एक टास्क बन कर रह गया है। बरातियों को थोड़ी-थोड़ी देर में सेनेटाइजर ऐसे दिया जा रहा था...जैसे सेनेटाइजर नहीं पंचामृत बांटा जा रहा है।लोग ऐसे आगे बढ़-बढ़ कर हाथ आगे बढ़ाते हैं जैसे पुण्य की गठरी में एक और जुड़ने से न रह जाये। कुछ बराती तो ऐसे थे कि अपने वाले से एक बार फुच करके ही सेनेटाइजर प्रयोग करते  पर मुफ्त में मिला तो फुच-फुच-फुच। 
मिश्राइन घबड़ाई-घबड़ाई सी इधर-उधर दौड़ रही थी। हम दूर खड़े तमाशा देख रहे थे ...क्योंकि निमंत्रण पत्र हमे अंत तक नहीं मिला। छत से ही शादी का मजा ले रहे थे। मिलनी की रस्म में तो इतनी गड़बड़ी हुई कि पूछिये ही मत...समधी साहब के फूफा और जीजा जी भी बिल्कुल कम न थे।
कोई काम बता दो तो कोरोना और दो गज दूरी का राग अलापने लगते पर जब मिलनी का वक्त आया तो स्पाइडर मैन की तरह भीड़ को चीरते हुए नकाबपोश जीजा और फूफा... ‘हम यहाँ हैं!’ कहकर अपनी उपस्थिति दर्ज कर दी। अब इतनी मंहगाई में जब सोने का दाम आसमान छू रहा है वहाँ अंगूठी न सही ग्यारह-इक्कीस सौ का नकद पुरस्कार मेरा मतलब नकद व्यवहार मिल जाये तो क्या बुरा है।
दरवाजे पर बारातियों के तापमान नापने के चक्कर में समधी साहब के फूफा जी नाराज हो गए- ‘बरातियों का स्वागत माथे पर बंदूक तान कर करने का कौन सा रिवाज है।’
मिश्रा जी ने कितनी मुश्किल से समझाया उनको।
इस मास्क के चक्कर में सबसे ज्यादा फजीहत अगर किसी की हुई है तो वो लड़की वालों की हुई। दरवाजे पर मिलनी के समय माननीय लोगों को नेगचार दिया... पर मास्क के चक्कर में मंडप के नीचे स्वागत के समय किसी को तो दो बार तो किसी को एक बार चवन्नी भी न मिल पाई...समधी साहब के फुले हुए फूफा जी गुस्से में और भी फुल गए...मिश्रा जी की सारी रात उन्हें मनाने में ही गुजर गई।
मुश्किलें अभी भी मुँह बाएँ खड़ी थी। पंडित जी धोती से मैचिंग मास्क लगाए ...दो गज की दूरी से स्वाहा-स्वाहा कर रहे थे। कोरोना काल मे पंडित जी भी बड़े अपडेट हो गए हैं ...पंडित जी विवाह की शुरुआत में वर-वधू को टीका न लगाएं ऐसे कैसे सम्भव है। मिश्रा जी की बिटिया की शादी में क्वालिफाइड और डिग्रीधारी पंडित जी ने इस का भी तोड़ निकाल लिया। श्री 1008 पंडित जी ने सेल्फी स्टिक में कान खोदने वाले रुई धारी यंत्र को आगे टिका दिया और फिर क्या टीकाकरण शुरू...। 
पंडित जी पूरी तरह अस्त्र-शस्त्र से लैस थे...मुँह पर मास्क, हाथ में  ग्लव्स और कुर्ते में सेनेटाइजर... जिसे वो थोड़ी-थोड़ी देर में निकालते और जजमान से प्राप्त नकद धनराशि पर फुच-फुच कर छिड़कते और अपने कुर्ते में धीरे से सरका देते। पंडित जी की इस गतिविधि को देख एक शरारती तत्व ने एक प्रश्न उनकी तरफ उछाल दिया-
‘पंडित जी!’
‘बोलो बच्चा!’
‘पडित जी, नोट में भी तो कोरोना वायरस हो सकता है ?’
लड़के की धृष्टता पर पंडित जी को क्रोध तो बहुत आ रहा था पर उन्होंने अपने क्रोध पर नियंत्रण करते हुए कहा- ‘‘पुत्र! नोट जिस स्याही से छापी जाती है उसके सम्पर्क में आकर सारे कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और वैसे भी मैं अग्नि के निकट बैठा हूँ जहाँ सारे कुत्सित विचार क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं फिर इस तुच्छ कीटाणु की क्या बिसात!’
धन्य है ऐसे विचार आते कहाँ से है, ये सोचने का विषय है। खैर...सदरी वाले सज्जन पुरुष ये कह कर तो निकल लिए... दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी, पर भाई कोई उनसे ये तो पूछे की कथनी और करनी में बड़ा फर्क होता है।
इधर शादी का कार्यक्रम चल रहा था, उधर बराती जीमने के लिए पहुँच गए। दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी... एक बड़ी समस्या बन चुकी है। आखिर आप ही बताइए...खाना परोसने के लिए मिश्रा जी दो गज का चम्मच, पोंना, कलछुल कहाँ से लाते। ये समस्या पूरी शादी में बनी रही... मिश्रा जी सबसे खाने के लिए लिए मनुहार कर रहे थे। तभी मिश्रा जी के बेटे ने एक व्यक्ति की तरफ इशारा किया। मिश्रा जी सोच में पड़ गए ..ये तो बराती नहीं लग रहा क्योंकि बरात में तो सबने एक जैसी पगड़ी पहन रखी है पर इसने नहीं.... आजकल तो कॉलेज भी बन्द है तो हॉस्टल वाले लड़के भी नहीं हो सकते फिर, जनाब मिश्रा जी की शादी में मास्क पहनकर बिन बुलाए मेहमान बनकर पहुँच गए थे। 
इमरती के स्टॉल के सामने खड़े वो तीन इमरती उड़ाने के बाद चौथी की तरफ हाथ बढ़ाने ही वाला थे कि मिश्रा जी ने पीछे से पकड़ लिया और बोले- ‘हम तो लड़की वाले हैं और ये लड़के वाले... आप किसकी तरफ से हो ?’
अब जनाब का हुनर तो देखिए, मिश्रा जी की आँखों में आँखें डालकर बड़े बेशर्मी से बोले- ‘मिश्रा जी! हम गिनती करने वाले हैं। शादी में काफी अच्छा इंतजाम किए हैं पर आपकी शादी में पच्चीस लोग ज्यादा हैं, चालान कटेगा, नहीं तो दूल्हा-दुल्हन की पहली रात जेल में होगी। भई एक दिन तो गुजारिये हवालात में...!’
मिश्रा जी को ए.सी. कमरे में भी पसीने आ गया। मिश्रा जी ने दूल्हे की कुर्सी पर बैठाकर बिटिया की अम्मा के हाथों से जनाब को खाना खिलवाया और फिर चलते-चलते ग्यारह सौ का लिफाफा दिया सो अलग। मिश्रा जी अब कोई भी गड़बड़ नहीं होने देना चाहते थे। चालान कटने के डर से वो फूंक-फूंक कर कदम रख रहे थे। बिटिया के जयमाल के समय डंडियों के सहारे वर-वधू ने एक-दूसरे को माला पहनाई गई। दूल्हे मियां शायद तीरंदाजी के शौकीन थे  ...माला एकदम टारगेट को छूते हुए बस निकलने ही वाली थी कि बड़ी अदा से दुल्हन ने संभाल लिया। बस समझो इज्जत बच गई। वरना माला पड़ोस की गुप्ता जी के बेटी के गले मे पड़ जाती।  
मिश्रा जी अब किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते थे। छायाकार महोदय को उन्होंने पूरी शादी में परेशान करके रख दिया... दूल्हा-दुल्हन ने दो गज के मंत्र को कुछ इस तरह से घोंट कर पिला दिया कि क्या कहे... कभी दूल्हा फ्रेम से गायब तो कभी दुल्हन। अरे भाई!!... क्यों बच्चे की जान लिए पड़े हो। 
एक तो आजकल लड़कियाँ अपनी विदाई में वैसे भी नहीं रोती, आखिरी मेकअप के नाम पर जो महीनों पहले से ट्रीटमेंट और हजारों रुपये फूंके है, उसे वो यूँ ही जाया नहीं होने दे सकती और अब तो कोरोना का भी बहाना मिल गया...आखिर सदरी वाले सज्जन पुरुष की बात का भी तो मान रखना था। बिटिया अपनी दादी से गले मिलने के लिए आगे बढ़ी ही थी कि मिश्रा जी ने डपट दिया।
सच बताए तो कोरोना काल में सबसे ज्यादा घाटा अगर किसी का हुआ तो वो उन लड़के-लड़कियों का हुआ, जो शादी में जाते ही इसलिए है कि आईं टॉनिक मिल सके ...बहुत सारे लड़के-लड़कियाँ तो इतने बड़े दिल के होते हैं जो अपने माता-पिता को अपने लिए योग्य वर योग्य वधू के ढूढंने के झंझट से भी बचा लेते हैं। यानी एक शादी के साथ दूसरी शादी मुफ्त-मुफ्त...मुफ्त! ये नौजवान आँखों ही आँखों मे मोटा -मोटा उस व्यक्ति का खाका भी खींच लेते हैं। कुछ तो सपनें में स्विट्जरलैंड की हसीन वादियों में एक-आध रोमाँटिक गाना भी गाकर आ जाते हैं पर उन्हें मास्क के नीचे कौन है पता ही नहीं चलता कि वो करिश्मा कपूर है या शाहरुख खान या फिर कांता बाई और रामू  काका..।
सच-सच बताइए इस कोरोना का कोई घर-परिवार, बहन, बेटी, ताऊ, चाचा या दूर के मौसा नहीं है क्या...ऐसा आया है कि जाने का नाम ही नहीं ले रहा। भाइयों और बहनों आप बिल्कुल भी परेशान मत होइए, हम भी आप लोगों की तरह ही न पचास में और न ही सौ की संख्या में गिने गए। सच मानिए, आजकल बस एक ही गाना याद आ रहा है- ‘ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं!’

-लाल बाग कॉलोनी, छोटी बसही, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश

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