महेश शर्मा

दूसरी औरत

सुबह के आठ बजते बजते जेल का पुराना केदी जगदिश चाय का तपेला चोक में रख कर आवाज लगा रहा था बैरक नम्बर एक के कैदी चाय ले जाओ अपनी अपनी। सभी केदी दोड पडे वेसे भी ठण्ड का मौसम था सभी ठिठुर रहे थे कोने में उदास ख्रड़ा चम्पालाल भी आगे बढा चाय लेने  लाइन में लगे उसकी नजर चाय के तपेले पर पडी चाय के नाम पर काला-काला गरम पानी था, जिसे लेने को कैदियों में धक्कामुक्की मच रही थी। अपने ग्लास में चाय नाम का काला पानी लेकर चम्पालाल मन्दिर के ओटले पर बैठा। चाय का पहला घुंट भरते ही मुंह कडवा हो गया और दिमाग में पिछले चार पांच महीने की सारी बातें घुमने लगी।
पुराने बस स्टैंड पर चम्पालाल का चाय का ठेला हमेशा ग्राहकों से घिरा रहता था,  चाय जो बढिया बनाता था वो  लोग-बाग चाय के साथ उसकी बातों के भी मजे लेते थे। चम्पालाल था भी रसिया  दिन भर चाय का ठेला लगाता हँसी मजाक करता। शाम को अपने घर जो वहीं बस स्टैंड के पीछे बना दो कमरों का कच्चा-पक्का मकान के रूप में था, वहीं ठेला भी खड़ा कर देता था।
     दिन भर की दुकानदारी के बाद देसी दारू का एक अद्धा रोजाना हलक के नीचे उतारता फिर खाना खाके सो जाता। सुबह वापस आठ बजे ठेला लगा के चाय की दुकानदारी शुरू। घर में औरत रामली और छः साल का मदन। परिवार का खर्चा-पानी अच्छी तरहे से चल जाता था। पास के गांव में चार बीघा जमीन थी जो बटइ से दे रखी थी। 
चम्पालाल के जीवन में वैसे तो कुछ भी समस्या नहीं थी, यदि थी तो बस एक मन की भटकन और वो ये कि एक औरत और करना है। रामली है पर जिन्दगी का मजा नहीं है। वो अपने दोस्त नाथू से अक्सर कहता रहता था कि ‘कुछ भी हो एक नातरा जरूर करना है।’
‘तो क्या रामली को छोडे़गा ?’ नाथू पूछता तो चम्पालाल मुस्कराकर कहता- भले ही रामली को छोड़ना पडे़ पर जिंदगी के मजे तो लूंगा यार। और बात इतने पर ही आई गई हो जाती। 
       रामली एक सीधी-सादी अनपढ सांवली सी औरत थी। चेहरे पर चेचक के दाग, सामान्य-सा बदन लिये एक बच्चे की माँ होकर भी काफी ढली हुई लगती थी। लेकिन आदमी का पूरा ध्यान रखती थी। चम्पालाल को टाइम पर खाना, बेटे मदन का ख्याल रखना, घर के सारे काम के अलावा चाय के ठेले की भी सुबह की तैयारी में हाथ बंटाती थी। रामली समझती थी कि उसके आदमी का मन उसमें कम है, पर क्या कर सकती थी वो। जीवन इसी तरह चल रहा था। तभी गांव में एक भूचाल आया।
बस स्टैंड के आगे नदी किनारे वाले मोहल्ले के कीसना बा की बड़ी बेटी को उसके घरवाले ने छोड़ दिया। दोनों परिवार वालों में खूब झगडे़ हुए। कीसना बा के दामाद का कहना था कि तुम्हारी बेटी का चालचलन ठीक नहीं है, वो घर में रखने लायक नहीं है। और कीसना बा का कहना था कि दामाद के मन में खोट है इसलिये बेटी को छोड़ना चाहता है। पंचायत बैठी 12000 रुपयेे में झगड़ा टूटा और जोहार बाई बाप के घर वापस आ गई। 23-24 साल की जोहार बाई औलाद तो कोई हुई नहीं थी, चेहरे का नूर अभी बाकी था, बदन में अभी भी कसावट थी। पर क्या करे आदमी से बनी नहीं। कीसना बा बोले- ‘भगवान की लीला बेटी घर मे ही सही, कोई अच्छा सा घर मिला तो नातरे दे दूंगा।’ 
जिस दिन से जोहर बाई अपने बाप के घर वापस आई तब से ही चम्पालाल के दोस्त नाथू का एक चक्कर रोजाना कीसना बा के यहां जरूर लग जाता था। महीना होते ना होते कीसना बा के यहां चम्पालाल की सम्पन्नता के उसके अच्छे स्वभाव के और दिल फरियादी के किस्से छोड़ने में नाथू कामयाब हो चुका था। कीसना बा भी रस लेता था नाथू की बातों में, और जोहरा बाई भी दोनांे की बातें कान लगाकर सुनती रहती थी। 
इधर नाथू ने चम्पालाल से ये पक्का करार कर लिया था कि जोहरा बाइ से गोटी फिट कराने की जवाबदारी पूरी-पूरी नाथू की है, पर बदले में चम्पालाल नाथू को अगली फसल तक के लिये 7000 रुपये बिना ब्याज के देगा। नाथू को भी अपनी जमीन छुड़ाना था, जो सेठ के यहां गिरवी रखी हुई थी। चम्पालाल जानता था कि ये 7000 रुपये कभी वापस आने वाले नहीं हैं, पर यदि जोहराबाई से कनेक्शन जुड़ जाये तो ये सौदा महंगा नहीं है, जिन्दगी के मजे आ जायेंगे। चम्पालाल के दिमाग में जोहराबाई का बदन घूम गया। 
एक दिन नाथू की सलाह पर चम्पालाल पाव भर मिठाई और नमकीन लेकर कीसना बा के घर पहुंच ही गया। कीसना बा तो चम्पालाल को जानते ही थे। आवभगत के साथ जोहराबाई के हाथ की चाय पिलवाई। आधा घंटा बैठ कर चम्पालाल वापस आ गया। इस बीच शिकार करने वाले और शिकार होने वाले दोनों ने एक-दूसरे को भांप लिया था। खास बात ये थी कि यहां शिकार कौन हो रहा था और शिकारी कौन था, ये बात बड़ी पेचीदा थी, जो अभी तो किसी को भी समझ में नहीं आनी थी। 
कुछ दिन तक तो एक-दो दिन छोड़-छोड़ कर, और फिर लगभग रोजाना ही दोपहर का एक-दो घंटा चम्पालाल कीसना बा के यहां बिताने लगा। बीच में कई बार कीसना बा इसी टाइम जरूरी काम से गांव में भी चले जाते थे, और एक-दो घंटे बिता कर ही आते थे।
      रामली बडा ताज्जुब करती कि आजकल उसका आदमी बहुत खुश रहता है। घर पर मिठाई भी लाता है। पर वो परेशान भी थी कि दोपहर में नदी पर जाने के कारण चाय की दुकान पर ग्राहकी कम हो जाती थी, और कमाई भी कुछ कम पड़ने लगी थी। कई बार चम्पालाल गुस्सा भी करने लगा था। एक-दो बार तो दिन में ही दारू पीकर आ गया था और ज्यादा पी ली थी तो शाम तक चाय का ठेला भी नहीं लगा पाया। आज तक चम्पालाल ने कभी दिन में दारू नहीं पी थी। और जिस दिन रामली घर के कपडे़-लत्ते इकट्ठे करके नदी पर धोनेे गई, उसी दिन उसे सारा किस्सा समझ में आ गया। आधी रामायण तो नदी पर आई उस मोहल्ले वालियों ने बता दी और बाकी जब वो नदी से घर के लिये चली तो सारा नजारा जीता-जागता सामने आ गया। कीसन बा के घर के कुछ दूर से ही रामली को दिखने लगा। कीसना बा के आंगन में पड़ी खाट पर लेटा उसका भरतार और ओसारे से बाहर आती जोहराबाई जो थाली में कुछ लाई थी। दोनों के बीच कुछ हँसी-ठिठोली होती रही, फिर अचानक चम्पालाल उठकर जोहराबाई के साथ घर के अन्दर चला गया। 
रामली अनपढ़ जरूर थी, पर औरत मर्द के बीच के अच्छे-बुरे रिशते समझने के लिये दुनिया की किसी पढ़ाई की जरूरत नहीं पड़ती है। सो रामली का चेहरा काले से और ज्यादा काला हो गया, चाल तेज हो गई और घर पहुँचते ही रोना-पीटना शुरू हो गया। रामली बेसब्री से चम्पालाल का रास्ता देखने लगी।
रोज की तरह चम्पालाल दारू चढ़ाकर झूमता मस्त होता घर आया। भूखी शेरनी की तरह रामली टूट पड़ी। चम्पालाल के होश फाख्ता हो गये। नशा गायब पहले तो हँसते हुए विरोध किया, फिर सारे प्रमाण जब रामली ने सामने रख दिये तो वो भी खुलकर सामने आ गया। दहाड़ते हुए उसने खुला एलान कर दिया- ‘मरद हूँ कमाता हूँ उसको रखूंगा  नातरा लाउंगा। तेरे पीछे जिन्दगी बरबाद थोडे़ ही करूंगा। जो करना है कर ले।’ 
       रात भर घर में कलह मचती रही। सुबह होते-होते चम्पालाल रामली को उसकी बूढी माँ के घर जो वहां से 10-15 किलोमीटर दूर था, छोड आया- स‘म्हालो तुम्हारी बेटी को,  काम-धाम कुछ करती नहीं, खाना बनाना आता नहीं।’ ये कहकर पलटकर भी नहीं देखा रामली की तरफ चम्पालाल ने। बेटा मदन भी डरा-डरा बाप के इस नये रूप को देखता रहा।
अब जंगल के आजाद शेर की तरह चम्पालाल घर पहुंचा। नाथू घर के आंगन में तैयार बैठा था। सबसे पहले तो पूरी बोतल बुलवाई और दोनों ने छक के पी। नाथू ने 8-10 दिन में काम पक्का हो जाने का भरोसा जताया और अपने 7000 की याद दिलाई। पूरी दोपहर से शाम तक चम्पालाल कीसना बा का मेहमान रहा। शाम को कीसनाबा ने लोकलाज के डर से उसको रवाना किया। 
जोहराबाई अब तक पूरी तरह से चम्पालाल की मुरीद हो गई थी, और उतावली थी उसके घर बैठने के लिये। रोजाना बाजार का नाश्ता-पानी, नगदी-पैसा, जान लुटाने वाला मरद, मकान भी, जमीन भी... और क्या चाहिये एक ओरत को दुनिया में। बाप-बेटी में इशारों-इशारांे मे बात हुई, और अगले दो-चार दिन में समाज में सुरसुरी छोड़ दी। नाथू बिचवान तैयार था ही। अचानक कीसना बा ने रंग पलटा चम्पालाल और नाथू के सामने। उनका एक ही राग था- ‘में बुढा आदमी एकला जमीन जायदाद कुछ भी नी किसके भरोसे ? मेरी जिन्दगी केसे कटे ? कुछ तो इन्तजाम करना पडे़गा।’  
पांच-दस समाज के लोगों की पंचायत बैठी। पीना-पिलाना हुआ। बीस हजार नगद कीसना बा को देना तय हुआ। अब बीस हजार की व्यवस्था तत्काल तो मुश्किल... फसल आने में चार महीने की देर। कीसना बा मानने को तैयार नहीं। 
जोहराबाई का दिल पसीजा। उसका सच्चा प्रेमी मरद जो था। उसने कीसना बा को मनाया। ये तय हुआ कि पांच हजार अभी बाकी चार महीने बाद। कीसना बा मान गये, पर नाथू नहीं माना। मजबूरन चम्पालाल ने सेठ के यहां मकान की लिखा-पढ़ी कर दस हजार लिये। पांच हजार कीसना बा को और पांच हजार नाथू को सौंप दिये। अब नाथू खुश था। फोकट के पांच हजार पके, जो वो कभी भी लौटाने वाला नहीं था।  कीसना बा खुश था, बेटी ने बेटे जैसे कमाई दी थी, और अभी तो पंद्रह हजार और मिलेंगे। चम्पालाल खुश था कि इस उमर में फिर एक जवान जोरू जो मिल गई थी। और जोहर बाई वो तो खुश थी ही एक नया आदमी मिला जोशखरोश वाला, पैसे वाला, उसके नखरे उठाने वाला, और उसकी हर जरूरत पूरी करने वाला। इस पूरे काण्ड से दुखी थी तो बस एक रामली। दुनिया में अक्सर ऐसा होता है कि एक आदमी खुद की खुशी के लिये ना जाने कितनों को दुखी कर देता है। मगर यहां मामला ये था कि एक रामली के दुख की कीमत पर इतने लोग खुश हो गये थे। 
खैर, चार-आठ दिन तक तो चम्पालाल का कीसना बा के यहां वैसे ही आना-जाना रहा। दोपहर को जाना, फिर कीसना बा का जरूरी काम से घर से बाहर निकल जाना और शाम तक आना। तब तक घर पर चम्पालाल और जोहराबाई, जोहराबाई और चम्पालाल... बस इसके सिवा कुछ नहीं।
      रामली और उसके गरीब परिवार की तरफ से कोई विरोध अभी तक चम्पालाल को नहीं मिला था। इसी को देखते हुए इस प्रेम कहानी का अगला एपीसोड भी शीघ्र ही सामने आ गया। आठवें दिन शाम के अन्धेरे में जोहारबाई चम्पालाल के दो कमरे वाले शीशमहल मे आ गई, हमेशा के लिये। कीसना बा खुश थे बेटी का रास्ता लगा, बीस हजार की कमाई हुई। लोग जरूर बातें करेंगे, तो करते रहें.. लोग और क्या कर सकते हैं।
चम्पालाल तो मानो स्वर्ग में आ गया था। कहां रामली और कहां जोहारबाई! कहां बासी जलेबी और कहां ताजा गरम रस से भरी इमरती। अगले 10-15 दिन तो दोनों के ऐसे मजे में गुजरे कि रात-दिन का भी होश नहीं रहा फिर कहीं जाके कुछ तृप्ति हुई तो काम धंधे की सूझी। चम्पालाल ने वापस अपने चाय ठेले पे ध्यान देना शुरू किया।  पिछले दो महीने से चल रहे जोहराबाई को फतह अभियान के कारण चाय की दुकान बिलकुल ठप्प हो गई थी। एक नया ठेला और लगने लगा था। बचत आधी हो गइ थी, फिर दस हजार की उधारी वाला भी रोजाना ब्याज के पैसे लेने आ जाता था। 
इधर जोहराबाइ बडे जतन से अपने नये घर को सजाने सवांरने में लगी थी। साफ सफाई करती, नये-नये सामान लाने की योजना बनाती।  एक दिन दोपहर में उसे कुछ भूख लगी तो बाजार का चरपरा खाने की मन में आई और तभी उसे याद आया पिछले आठ-दस दिन से चम्पालाल घर पर कुछ नाश्ता भी नहीं लाया है, और तो और कई बार तो वो दोपहर में घर भी नहीं आया था। बस, फिर क्या था शाम को ही अपना रौद्र रूप दिखाया। खाना बनाना तो दूर जो गुस्सा कर के बैठी की दो घण्टे में मानी। चम्पालाल रात को ही मिठाई लाया, चरपरा लाया और खाने का सामान भी लाया। साथ में खुद की दारू भी लाया और वो रात बढ़िया कटी।
दूसरे दिन चम्पालाल ने फिर एक साहूकार से दो हजार रूपये उधार लिये और जोहारबाई के लिये साड़ी-ब्लाउज, पायजेब, नई चप्पलें और घर का भी कुछ सामान लेकर शाम को घर पहुँचा। जोहारबाई धन्य हो गई। खूब लाड लड़ाया। मालपुए बनाये। उस रात तो बहुत मजे किये ही अगला एक महीना भी अच्छा गुजरा। 
रामली के गांव से एक उसका रिश्तेदार बीच में आया था, कह रहा था कि उसको वापस रख ले, पर चम्पालाल ने पूरी दादागिरी से उसे भगा दिया। उसी शाम चम्पालाल जब अपने धंधे का महीने का हिसाब मिलाने बैठा तो चकरा गया। कुछ समझ नहीं आ रहा था। बचत कुछ नजर नहीं आ रही थी। दूध वाले के भी पैसे चढ़ते जा रहे थे। पुराना कर्जा कुछ भी नहीं चुका पा रहा था। और घर का खर्च ? बाप रे पिछले दिनों से दुगना होता जा रहा था। उसे पुराने दिन याद आये। रामली के टाइम बहुत बरकत थी धंदे मे, ना जाने क्या हो गया है आजकल। खैर, पहला काम उसने ये किया कि साहूकार को रोजाना ब्याज देने से साफ मना कर दिया- ‘इकट्ठा ब्याज फसल पर ही दूंगा।’ 
साहुकार बोला- ‘फिर ब्याज पर भी ब्याज लगेगा।’ 
चम्पालाल  ने मंजूर किया। फसल आने में अभी दो महीने की देर थी चम्पालाल को समझ नहीं आ रहा था कि गाडी कैसे पटरी पर लाऊं। आखिर उसने निर्णय लिया। जोहराबाई को समझाना पडे़गा कि घर का खर्चा कम करे। 
रात को अपनी महारानी को खूब प्यार जताते हुए चम्पालाल ने कहा- ‘जोहार, इस महिने हमें तेल-घी का और बाजार का खर्चा कम करना पड़ेगा। दुकान में बहुत मद्धीवाडा है। फसल भी कमजोर है। इस साल गाड़ी बेलेन हो रही है।’ 
सुनकर पहले तो जोहारबाई बिफरी, दुहाई देने लगी- ‘मैं तो कुछ भी खर्च नहीं करती।’ फिर अचानक कुछ सो कर यकायक चुप हो गई। 
अगले कुछ दिन थोड़े ठण्डे-ठण्डे, रूखे-रूखे गुजरे। नोन तेल लकडी के फेर में तो बाजबहादुर भी अपनी मोहब्बत भूल जाता, चम्पालाल कौन से खेत की मूली था। अचानक एक दिन जोहराबाई बापू के घर जाने की जिद करने लगी। चम्पालाल ने भी खुशी-खुशी भेज दिया, कहा- ‘शाम को आ जाना।’ जोहराबाइ दूसरे दिन का कहकर चली गई।
      उस रात चम्पालाल अकेला होने से कुछ परेशान भी रहा और खुद को कुछ आजाद भी महसूस किया। रामली की भी याद आई। चम्पालाल समझ ही नहीं पा रहा था कि वो सुखी है या दुखी! वो पहले अच्छा था या अब अच्छा है। इसी दुविधा में रात बिताई। 
      दूसरे दिन जोहारबाई आ गई। कीसना बा भी साथ में आये थे। वो केवल याद दिलाने आये थे कि ‘फसल आने वाली है, रूपयों की सख्त जरूरत है, कब तक हो जायेंगे, जल्दी इन्तजाम करो।’ चम्पालाल ने उनकी आवभगत की, विश्वास दिलाया कि काम हो जायेगा। 
      अब चम्पालाल फिर दुकान में मेहनत करने लगा, ताकि घर खर्च और कुछ ब्याज इतना तो दुकान मंे से निकल जाये, ताकि फसल आये तो कीसना बा को बाकी पंद्रह हजार चुका सके। चम्पालाल के दिलो-दिमाग से इश्क का भूत पूरी तरह निकल चुका था। रात को घर आता। जोहारबाई पर नजर पड़ती तो पंद्रह हजार पहले याद आते, ना खाना अच्छा लगता ना रात को नींद आती। जोहारबाई कुछ लाड भी लड़ाती तो ऐसे लगता जैसे कोई भूतनी लिपट रही हो। 
      अब तो दिन में कई छोटी-मोटी बातों पे झगड़े भी होने लगे। हर बात पर खींचातानी होना अब आम बात हो गई थी। चम्पालाल फसल का रास्ता देख रहा था। ‘पंद्रह हजार चुका दूं फिर साली को सुधार दूंगा।’ 
आज का दिन चम्पालाल के लिये बड़ा बुरा निकला। जमीन की बटाई वाला आया था, पूरा हिसाब जोड़कर लाया था। फसलों में कीड़ा लगने से दवाइयों का खर्चा ज्यादा हो गया था, फसल भी कमजोर थी, सब खर्चा काटते बीस हजार की कमाई हुई। चम्पालाल के हिस्से के दस हजार लेके आया था वो। जबकि चम्पालाल को पूरा भरोसा था कि तीस चालीस हजार की फसल होगी, कीसना बा से पिंड छूट जायेगा। अब क्या होगा ? कीसना बा के पंद्रह हजार सेठ के दस हजार और ब्याज दोनों को देना जरूरी है। रात को ही जोहराबाइ ने अल्टीमेटम दे दिया था कि मेरे बापू के पूरे पंद्रह हजार दो-चार दिन में दे ही देना। क्या फिर कोई नया साहूकार ढूंढना पड़ेगा ? तभी शान्तु सेठ, पुराना साहुकार दस हजार मूल ओर दो हजार ब्याज कुल बारह हजार की चिट्ठी लेकर आ गया- ‘आज ही देने पड़ेंगे।’ 
चम्पालाल ने समझाया कि पांच हजार तो नाथू से दिलवायेगा। लेकिन सेठ ने उसके कान के जाले साफ कर दिये। ‘नाथू तो पिछले दो महीने से गांव से बाहर है। खुद की फसल पेटे परबारे किसी दूसरे से पहले ही उधार ले जा चुका है। नाथू से तेरे को कुछ नहीं मिलने का।’
चम्पालाल तो आसमान से गिरा और ऐसा कि नीचे टिकने को जमीन भी नहीं मिली और मिली भी तो सामने आंखे फाडे... घूरती हुई जोहराबाई- ‘मेरे बापू के पैसे ना दिये तो देखना नासपीटे मैं तेरा क्या करूंगी।’ 
चम्पालाल भी गुस्से में था, बोल पड़ा- ‘जो तेरे से बने वो कर लेना। जब पैसे आयेंगे तब दूंगा ना, तू तो मेरी घरवाली है...।’
‘जब तक बापू के पूरे पैसे ना देगा, तब तक हक मत जताना मेरे ऊपर तेरी गुलाम नी हूँ। चार महीने से मजे ले रहा है मेरे। फोकट की समझ रखी है क्या।’ और चिल्लाती-दहाड़ती जोहराबाइ शाम होते-होते छाती-माथा कूटते अपने घर जा चुकी थी। रात को कीसना बा भी आकर चेतावनी दे गये थे कि ‘सुबह आठ बजे तक बाकी पैसे ला देना तो जोहरा आ जायेगी वरना..समझ लेना!’
रात भर चम्पालाल परेशान रहा। बिलकुल नींद नहीं आई। पैसों की जुगाड़ का कोई रास्ता ना दिखा। सोचते-सोचते आंखों में आंसू जरूर आ गये और उन आंसुओं में झिलमिल करती रामली और मदन की तस्वीर दिखी मन में पछतावा भी शुरू हुआ।
किस्मत का कुछ खेल अभी बाकी था। दूसरे दिन सुबह तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन दोपहर में अचानक चाय के ठेले के सामने पुलिस की जीप आकर रुकी। पुलिस उतरी और उसे साथ ले गई। थाने जाकर पता चला कि उसने गांव की एक जवान औरत को अपने घर में जबरदस्ती बंद करके रखा, डरा-धमकाकर उसके साथ बलात्कार करता रहा। और इसी जुर्म में पुलिस ने उसे अरेस्ट किया है।  
     चकराता हुआ चम्पालाल हाथ जोडे़ गिड़गिड़ाता रहा- ‘साब, वो तो मेरी नातरे वाली लुगाई है। मैंने उसको रखा है।’
‘ये सब गवाह-सबूत बाद में देना। अभी तो वो जोहारबाई और उसका बाप रिपोर्ट लिखवा के गये हैं।’ थानेदार ने बड़ी बेरूखी से जवाब दिया।
‘पर साब, वो पिछले चार महीने से मेरे घर में रह रही थी। सारे गांव को मालूम है। आप पता कर लो। और साब, आप भी तो आते थे मेरी चाय की दुकान पर आपने भी देखा होगा ?’
      ‘अरे तो साले... हम आते थे तो क्या तेरे घर में झांकने आते थे ?’ थानेदार ने झिड़का- ‘देखना सुनना अलग बात है, कागज पर प्रमाण अलग बात। तेरे पास कोई प्रूफ है कि वो तेरी घरवाली है ? हेडसाब बन्द करो साले को।’            चम्पालाल सकते में आ गया। दो दिन हवालात में रख के सीधा जेल भेज दिया गया। धारा 376 बलात्कार, गम्भीर अपराध। ओह.... एकदम चम्पालाल की विचार यात्रा रुकी। हाथ की चाय वैसे की वैसी थी सामने रामसिंह हेडसाब खड़ा था।
      ‘क्यों बे, अब पछता रहा है। खूब जवानी चढ़ी थी बेटा, हो गया ढीला।’ हँसते-हँसते हेडसाब तो चल दिया, पर चम्पालाल रो पड़ा आंख में आंसू आ गये। 

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आज सात दिन हो गये जेल में। रोते-रोते दिन निकल रहे हैं। न तो जेल की रोटी अच्छी लगती है, न ही रात को नींद आती है। घर याद आ रहा है, रामली याद आ रही है, मदन याद आ रहा है। खुद की बेवकूफी पर पछताना और रोना... यही कर रहा है वो... रोज। जेल वाले हेडसाब बता रहे थे कि ‘376 में जमानत भी मुश्किल से होती है, अभी भी मौका है, समझौता हो सकता हो तो कर ले, वरना मर जायेगा बेमौत।’ 
‘क्या करूं ?’ इसी सोच में था कि चौंक गया उसके नाम की आवाज लगी थी। उसने कान दिये, जगदीश की आवाज थी- ‘चम्पालाल गांव बडगोंदा.. चलो मुलाकात आई है।’
कौन होगा ? चम्पालाल सोचने लगा। पिछले सात दिन में तीन चार खास दोस्त ही मिलने आये थे। आज कौन होगा ? सोचता हुआ चम्पालाल बाहर बडे गेट की तरफ बढ़ा और उसने गेट की जाली से जो देखा, भरोसा नहीं हुआ, उसकी आँखांे में आंसू आने लगे। बाहर रामली और मदन दोनों खड़े थे, रामली के हाथों में रोटी की पोटली। चम्पालाल को लगा, जैसे देवदूत आये हैं उसके दिल में रामली के लिये छुपा हुआ प्यार और मदन के प्रति स्नेह उछाले मारने लगा। 
      चम्पालाल की झुकी हुई गरदन और भींगती आंखे देखकर उस देहाती अनपढ कुरूप औरत का हाथ अपने आप बढ़कर उसे सहलाने लगा।  चम्पालाल रो पड़ा। उसे लगा ये तो भगवान का हाथ है। वो गेट पर रुक न सका। अन्दर आकर खूब रोया। किसी के चुप कराने से भी चुप ना हुआ। जैसे-तैसे शाम हुई। चम्पालाल का दिमाग एक ही बात सोच रहा था कि कैसे मुक्ति मिलेगी इस नरक से। वो रह-रहकर भगवान से माफी माँग रहा था। अचानक गेट से फिर आवाज आई- चम्पालाल बडगोंदा वाला .....मुलाकाती है ...। 
अब कौन है ? क्या रामली अभी तक यहीं बैठी है। चम्पालाल असमजंस में गेट की ओर चला। बाहर देखा, नाथू था। एक क्षण तो गुस्सा आया फिर गुस्से को व्यर्थ जानकर कौतुहल से बोला- ‘क्या हुआ नाथू, कहां था तू अभी तक ? 
ताने-उलाहने के बाद नाथू ने बताया कि वो जोहारबाई से मिलकर आ रहा है, बहुत नाराज है वो। उसको तूने चार महीने तक वापरी और कीसना बा को टेम पे पैसा नही दिया। अब उनकी नीयत में खोट आ गई है, इसीलिए रिपोर्ट डाली है। 
      चम्पालाल नाथू के हाथ जोड़ने लगा- ‘मेरे को बचा ले यार नाथू! मेरे को छुड़ा ले यहां से। तू मेरा दोस्त है यार!’
  नाथू ने तुरन्त उपाय बताया- ‘देख कीसना बा और जोहारबाई दोनों का गुस्सा बहुत तेज है। दोनांे पैसों के दास हैं। तू बोले तो मैं राजीनामे की बात करूं, पर अब खर्चा ज्यादा लग जायेगा। पचास हजार से कम में कीसना बा मानने वाला नहीं है, और कुछ पुलीसवालों को भी देना पडे़गा। कोरट में बयान होने के पहले केस खतम हो जायेगा।’
‘पर इतने पैसे मेरे पास कहां हैं यार, तुझे तो मालूम है ?’ 
    ‘तू सोच ले, पैसे की व्यवस्था कर या फिर ये मान ले कि चार बीघा जमीन थी ही नहीं तेरे पास। जोहराबाई के नाम कर दे जमीन, और छुट्टी सब बात से। कल तक सोच ले, कल मैं फिर आऊंगा। और देख यार इतनी मेहनत कर रहा हूँ तेरे लिए, मेरी दाडकी मत भूल जाना।’ 
चम्पालाल वापस अन्दर आया। वही असमंजस, वही क्या करना, क्या नहीं करना। किंकर्तव्यविमूढ़। 
साथी कैदी पुछ रहे थे- ‘आज तो चम्पालाल की दो-दो मुलाकात आई। कौन-कौन था ?’
किसी जानकार कैदी ने चुटकी ली- ‘सुबह पहली वाली औरत थी, और अब शाम को दूसरी वाली।’
रात भर चम्पालाल सोचता रहा- चार बीघा जमीन बड़ी या घर का सुख ? जेल से छुटकारा... रामली और मदन के साथ फिर सुखी जीवन ?  आंखों में आंसू लिये चम्पालाल भगवान को धन्यवाद दे रहा था वो मान गया कि उसने गलती की रामली ओर मदन का दिल दुखाया तो भगवान ने उसे सजा दी अब जमीन जाती है तो जाये। चार बीघा जमीन जाती दिखी चम्पालाल को, पर तभी दिखा स्वर्गलोक जैसा वो दो कमरे का अपना घर जिसमें रामली ओर मदन दोनों उसका इंतजार कर रहे थे। वो निर्णय पर पहुंच गया। उसका सारा असमंजस दूर हो गया था। उसने तय किया कि नाथू को आते ही राजीनामे के लिये बोल दूंगा और ये भी तय किया कि दूसरी औरत का चक्कर बहुत खराब होता है। औरत एक ही भली। 

-224, सिल्वर हील कालोनी धार, जिला धार मध्य प्रदेश

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