राजेश सिंह

शब्दों की सत्यता


कवि से 

लोग पूछ रहे हैं

शब्दों की सत्यता के बारे में 

और ये भी कि

क्यों... अब तुम्हारी कविता में 

ये शब्द नजर नहीं आते।

 

कवि चुप है, क्या बताए लोगों को

कि शब्दों ने अपने अर्थ खो दिये हैं

कि शब्दों ने धोखा देना सीख लिया है।

 

प्रेम’ शब्द द्वारा

इस धरा पर

सबसे ज्यादा छली गयी हैं- स्त्रियाँ!

भरोसे’ ने 

सबसे ज्यादा लूटा है मजलूमों को!


स्त्रियों को तो भरोसे पर ही भरोसा नहीं रहा

हर बार 

उनकी इज्जत तार- तार की है, इस शब्द ने!

 

नेताओं के प्रयोग से ‘आश्वासन’ शब्द तो 

छिलता जा रहा है, प्याज के छिलके की तरह 

कवि मौन है प्रार्थना में 

शब्द बेचैन हैं... 

उनके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है!!


-701, स्वाति फ्लोरेंस, निकट सोबो सेंटर, साउथ बोपल, अहमदाबाद  380 058

 


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