दृश्यों में जीवन और जीवन के दृश्य
भूखी-प्यासी औरतें
गा रही हैं
ईश्वर को छप्पन भोग लगाने के गीत
बुझा-बुझा सा मुरझाया चेहरा लिए
एक स्त्री बेच रही है
सड़क किनारे गजरा
बातों में मिठास घोलकर
नुक्कड़ पर चाय बेच रहे आदमी
के जीवन से
गायब हो चुकी है मिठास
फुटपाथ पर रंगों की दुकान लगाकर
रंग-बिरंगे गुलाल बेचने वाले
आदमी के चेहरे का रंग उड़ चुका है
त्योहारों में
मिट्टी के दीये बनाकर
हजारों घरों को रोशन करने वालों के घर
आज भी डूबे हैं अंधेरे में
पिताजी का हाथ देखकर
अक्सर
उनका भाग्य बाँचने वाले
पंडितजी का भाग्य बदले
हमने आज तीस सालों में कभी नहीं देखा
यह जो लड़का
अभी-अभी
सुबह-सुबह
हाथ में थमा गया है अखबार
उसकी कभी कोई खबर हमने
आज तक अखबार में नहीं पढ़ी
और
यह जो छोटी-सी प्यारी बच्ची
हाथ में छोटा सा तिरंगा लिए
छब्बीस जनवरी की सुबह-सुबह
हँसती-खिलखिलाती हुई
स्कूल की तरफ दौड़ी जा रही है...
वह नहीं जानती अभी
गणतंत्र किस चिड़िया का नाम है!
- जनमत शोध संस्थान, दुमका 814 101
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें