मैं क्वारेनटीन में हूँ!
मैं लिख रही हूँ तुम्हारे ही लिए
कमरा एसी है
सागवान की लकड़ी की अल्मारी में किताबें है
लैपटॉप है
और तुम्हारा ध्यान!
न्यूज में बता रहे हैं
तुम्हें स्टेशन पर से मार डंडे भगा देते हैं ?
तुम कहाँ जाते हो तब ?
स्टेशन की दूसरी तरफ, नाले के पास
रात भर मच्छर काटेंगे!
भोर से कुछ नहीं खाया पुलिस के डंडे के सिवा ?
पाँच सौ रुपये थे कोई सोते में जेब से निकाल ले गया
इतनी गंदगी और मच्छर में तुम सो कैसे गये ?
भैंस हो ?
बस आयी थी, बैठ जाते
छत का पाँच सौ, भीतर बैठने का एक हजार माँग रहे थे ?
खड़े रह गये!
दूसरा दिन है
आज खाना बँटा था
तब तुम चीख-चीख कर क्यों रोने लगे थे ?
पत्रकार पूछ रहे थे
तुम ‘घर-घर’ कह रो रहे थे।
चालीस किलोमीटर चले, पैंतीस और चलना है
माथे पर बिटिया बैठी है, बुखार है
बस एक सौ दो ?
मैं लिखने में लगी हूँ तुम्हारे वास्ते
जरा एसी ऑन कर लूँ
मेरे पास दस हजार किताबें हैं,
करोना से संबंधित
देश-विदेश में प्रकाशित सब लेख मैं पढ़ चुकी हूँ
मैं तुम्हारी तस्वीर लगाकर तथ्यपरक, बेहतर और प्रभावशाली भाषा में लेख लिखूँगी
कविताएँ भी, कई कहानियाँ
रुको
मैंने आज चिकन बिरियानी बनाई है
रायता रह गया है
बना कर, खाकर आती हूँ
फिर लिखूँगी
तुम्हारी भूख, तुम्हारी पीड़ा, तुम्हारे तंग हाथ
और हाँ, घास खाते बच्चों की कहानी
मेरे शब्दकोश बड़े समृद्ध हैं, मैं बहुत पढ़ी लिखी हूँ
मैंने कई किताबें पढ़ी हैं, मैं तुम्हारे लिए लिखूँगी
काश! कि तुममें से कोई लिखता एक कविता
और ढा देता एसी में पेट भर खा कर लिखी गयी
मेरी कविताओं के बुर्ज खलीफा को
जो दुबई माल के बगल में ढीठ खड़ी है।
मैंने कहा था न मैं बहुत निर्मम हूँ
उससे भी वीभत्स है मेरा ज्ञान!!
-31, कावुलेन, त्रिवेंद्रम, केरल 689008
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