राकेश कुमार तगाला

अभिनय

वह आज सुबह से परेशान था। वह पत्र पढ़कर रो रहा था। आखिर मेरा अपराध क्या था? जो मीना ने मेरे साथ ऐसा किया। वह खुद से तरह-तरह के सवाल कर रहा था। काश मैं मर जाता। वह दोबारा पत्र खोलकर पढ़ने बैठ गया। 
‘‘रवि, मैं जा रही हूँ। हमेशा-हमेशा के लिए। मुंबई मायानगरी मुझे बुला रही है। मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना। तुम्हारा मेरा कोई मेल नहीं है। हमारे रास्ते अलग-अलग हैं। अब हम एक छत के नीचे नहीं रह सकते। वैसे भी तुम जैसे इंसान जीवन में धोखा खाने के लिए ही पैदा होते हैं। तुममें एक अच्छाई भी है। कोई भी तुम्हारे सामने बैठकर थोड़ा गिड़गिड़ा दे, फिर तो तुम गए काम से। तुम खुद को बड़ा दानवीर कर्ण समझते हो। मेरा कोई दोष नहीं, हर आदमी सफल होना चाहता है। सफलता की राह कठिन होती है। उसके लिए कई कठिन फैसले लेने पड़ते हैं। मैंने भी तुमसे अलग होने का फैसला ले लिया। पत्र पढ़कर आँसू मत बहाना। वैसे भी तुम औरतों की तरह, जब देखो गंगा-जमुना बहाना शुरू कर देते हो। तुम बड़े ही मूर्ख हो, समझ रहे हो ना... मैं क्या कह रही हूँ ? मैं फिर कह रही हूँ, मुझें ढूंढने का प्रयास नहीं करना।’’ 
रवि पत्र रखकर फिर से रोने लगा- क्या मैं इतना बुरा हूँ ? फिर मुझसे शादी क्यों की थी... सारे समाज से लड़कर... हमारा समाज अंतरजातीय विवाह स्वीकार नहीं करता। पर तुम अड़ गई थी। तुमने अपने माता-पिता का बहिष्कार कर दिया था। मुझे आज भी वह दिन याद है। हमारे कॉलेज का वार्षिक समारोह, जिसमें तुमने सुंदर भाषण दिया था कि इंसान को आगे बढ़ाने के लिए कठिन से कठिन डगर को पार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। अपना लक्ष्य नहीं छोड़ना चाहिए। तुम्हारा जोशीला भाषण सुनकर कॉलेज के लड़के-लड़कियाँ कुर्सियों से उठकर खड़े हो गए थे। अध्यापक भी तुम्हारी बहुत प्रशंसा कर रहे थे। सभी तुम्हें बधाई दे रहे थे। मैं भी उसी भीड़ में शामिल था। मुझे कभी नहीं लगा कि तुमने मुझे कभी नोटिस किया होगा। पर तुमने तो मुझे पूरी तरह हैरान दिया था। जब तुमने मेरा नाम पुकारा था- ‘मिस्टर रवि, प्लीज रुक जाइए।’ मेरे कदम खुद-ब-खुद रुक गए थे, तुम्हारी सुरीली आवाज सुनकर। तुम्हारा सवाल था- ‘मेरा भाषण आपको कैसा लगा ?’ मैं तुम्हें ही देख रहा था, बिना पलक झपकाए। शायद मुझे उसी समय तुमसे प्यार हो गया था। मन कर रहा था, अभी अपने प्यार का इजहार कर दूं। पर यह समय उचित नहीं था। ‘जी, आपका भाषण कमाल का था! आपकी आवाज में कमाल का जोश है! आप तो अच्छी नेता बन सकती हो। आप इतनी सुंदर हो... अभिनेत्री बन सकती हो।’ और तुम खिलखिला कर हँस पड़ी थी।
यह हमारी पहली मुलाकात थी। फिर तो हमारी मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा था। कभी कॉलेज कैंटीन में, कभी लाइब्रेरी में, पार्क में, बस में,सिनेमा में। सिनेमा, जब तुमने आमिर खान की फिल्म देखने की बहुत जिद की थी। मेरे लाख मना करने पर भी तुम नहीं मानी थी। क्या नाम था उस फिल्म का- ‘अकेले हम अकेले तुम’ मैं पीछे नहीं बैठना चाहता था। तुम मुझे खींचकर ले गई थी। पीछे आराम से बैठेंगे, पर मुझे डर था कि जब भी कोई रोमाँटिक सीन आएगा। मनचले सिटी बजाएंगे... और आगे कुछ भी बोल नहीं सका था। तुम पूरी तरह फिल्म में व्यस्त थी। फिल्म पूरी होने के बाद भी, तुम्हारी फिल्म पूरी नहीं हुई थी। सिनेमा से बाहर आने के बाद भी तुम हर सीन पर मुझसे तर्क-वितर्क कर रही थी। पहला सवाल था- क्या मनीषा कोइराला ने प्रेम विवाह करके अच्छा किया? अच्छा छोड़ो यह बताओ क्या आमिर खान का नया लुक तुम्हें पसंद आया ? क्या तुम्हें भी आमिर खान की फिल्म अच्छी लगती है? और ना जानें कितने ही सवाल कर डाले थे ? मेरा सिर चकराने वाला था। मुझे डर था कि कहीं मैं बेहोश ना हो जाऊं ? मुझे चुप देखकर तुम भी चुप हो गई थी। मैंने एक गहरी साँस ली। 
मैं वर्तमान में लौट आया था। पत्र फिर से पढ़ना शुरू कर दिया- 
‘‘...अगर मुझे ढूंढने की कोशिश की तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा होगा। पहली बात तो तुम मुझे ढूढ़ नहीं सकते। माया नगरी बहुत बड़ी है। फिर भी अगर तुमने मुझे ढूंढ निकाला तो मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगी। झूठे रेप केस में, तुम्हें जेल की हवा खिलवा दूंगी।’’ 
जेल की हवा, कोर्ट-कचहरी। वह एक बार फिर अतीत के आगोश में चला गया। 
जब हमने कोर्ट-मैरिज कर थी। हम घर से दूर चले गए थे। तुम्हारे माता-पिता ने मुझ पर कोर्ट केस कर दिया था। पुलिस रात-दिन हमारे ठिकानों पर दबिश दे रही थी। मीना, तुम्हारे घर, तुम्हारी सहेली से पूछताछ की जा रही थी। मेरे परिवार का तो बुरा हाल था। पुलिस हर तरह से उन्हें प्रताड़ित कर रही थी। उनके साथ बुरा व्यवहार कर रही थी। जब मैंने कहा था कि हम और अधिक नहीं छिप सकते तो तुमने किस बहादुरी से पुलिस कमिशनर को फोन किया था। और सहयोग की अपील की थी। हम दोनों कोर्ट में आए थे। तुमने किस दिलेरी से अपने परिवार के सामने ही मेरा हाथ थाम लिया था। यह कहकर- ‘जज साहब अगर मेरे पति को कुछ भी हुआ तो इसका सारा दोष मेरे परिवार का होगा। वह हमें मारना चाहते हैं।’ तुम्हारे पिता जी तुम्हें घूर रहे थे। और तुमने किसी की परवाह नहीं की थीं। तुम तो सिर्फ जीतना चाहती थी। कोर्ट परिसर में तुम्हारी दिलेरी की चर्चा हो रही थी। लोग मुझे भी हाथ मिलाकर बधाई दे रहे थे। और कह रहे थे कि मैं बहुत किस्मत वाला हूँ। जो मुझे मीना जैसी जीवन साथी मिली हैं। मुझे तुम्हारी रुचि का पता था। तुम फिल्मों में काम करना चाहती थी, किसी भी कीमत पर। तुम दिन-रात फिल्मों का बारीकी से अध्ययन करती रहती थीं। फिर मुझसे उनके बारे में तर्क-वितर्क किया करती थी। तुम्हें तो मेरे खाने-पीने की भी सुध नहीं रहती थी। ऑफिस जाते समय जब भी टिफिन के बारे कहता था। तुम मेरे चेहरे पर गुस्सा देखकर भी नहीं डरती थी। बस मुझे पीठ पीछे से अपनी बाहों में भर लेती थी। मेरा गुस्सा तुम्हारा स्पर्श पाकर हवा में हो जाता था। मैं तुम्हारे आगे नतमस्तक हो जाता था। तुम्हें मेरी कमजोरी अच्छी तरह पता थी। उस दिन जब तुम सीढ़ियों से फिसलकर नीचे गिर गई थी। तुम्हें पाँव में मोच आ गई थी। मैं कितना घबरा गया था ? मैं बार-बार भगवान को कोस रहा था कि तुम्हारी जगह मुझे चोट लग जाती। पर तुम्हारे माथे पर दर्द की शिकन तक नहीं थी। तुमने खुद ही मालिश करके अपने पाँव को ठीक कर लिया था। तुम्हारी हिम्मत का मैं कायल था। मैं तुम्हारे सामने खुद को कमजोर समझता था या कमजोर था!
मैं मन ही मन कह रहा था- मीना अगर तुम मेरा साथ चाहती तो क्या मैं मना करता ? पहले भी तुम अपनी मनमर्जी ही करती थी। जब भी कोई फिल्म लाइन से जुड़ा व्यक्ति घर आता तो तुम घण्टों उससे बातें करती रहती थी। मैं तो उस दिन छुट्टी पर रहता था, तुम्हारे ही कारण। दिन में छह-छह बार तुम्हारे लिए कॉफी बनाता था। जब भी तुम घर पर खाना नहीं बनाती थी। मुझे यहीं कहती थी- बाहर खाने चलंे, मैं तैयार रहता था। बस तुम्हें खुश देखना चाहता था। तुम ही मेरी खुशी थी। तुम्हें जब भी माया-नगरी से किसी रोल को प्ले करने के लिए बुलावा आता था। मैं सब काम छोड़कर तुम्हारे साथ चल पड़ता था। तुम्हें पता था कि मेरी सारी सेविंग धीरे-धीरे खत्म हो रही थी। पर मैं तुम्हारे लक्ष्य को पाने में तुम्हारा साथ दे रहा था। रोज-रोज छुट्टी लेना, मेरी नौकरी पर भी खतरा मंडरा रहा था। बॉस, मुझसे खुश नहीं था। पर तुमने ही सलाह दी थी कि बॉस को एक दिन घर पर बुला लो। पहले तो बॉस नहीं माने थे, पर जब मैंने काफी अनुरोध ने किया, तो बॉस मान गए थे। तुमने बॉस का जोरदार स्वागत किया था। 
वह तो तुम्हारी तारीफ करते नहीं थकते थे- ‘तुम्हारी बीवी तो कमाल की है! गजब का आत्मविश्वास भरा है उसमें। तुम्हारे हाथ तो मोती लग गया है।’ बॉस ने कह दिया- ‘तुम छुट्टी ले सकते हो।’ पता नहीं तुमने क्या जादू कर दिया था ? तुम्हारा व्यक्तित्व ऊंचा होता जा रहा था। 
जब तुम्हें पहला ब्रेक मिला था फिल्म में, तुम्हारा पहला रोल एक बेवफा का था। मैंने तुम्हें मना किया था कि तुम इस रोल को ना करो। पर तुमने सीधे शब्दों में कहा था- ‘बड़ी मुश्किल से चांस मिला है।’ वह फिल्म तो नहीं चली थी। पर तुम्हारे छोटे से रोल की भर पूर सराहना हुई थी। तुम आगे बढ़ने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हो, तो तुमने हँसते हुए कहा था- ‘जानू यह सिर्फ फिल्म की माँग थी। तुम भी ना...!’ तुमने फिर मेरी कमजोरी का फायदा उठाया और मुझे बाहों में लेकर बोली- ‘तुम बहुत जल्दी ही गर्म हो जाते हो।’ उस दिन मुझे पहली बार डर लगा था कि कहीं आगे बढ़ने के चक्कर में तुम मुझे छोड़ ना दो। पर मैं गलत साबित हुआ। उस दिन से तुम मुझे अधिक प्यार करने लगी थी। 
जब भी मैं कहता- ‘मीना अब हमें परिवार को आगे बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए। हमारी शादी को चार साल हो गए हैं।’ तुम बरस पड़ी थी- ‘अभी बच्चे पैदा करने की क्या जल्दी है ? रवि, बच्चे पैदा करने के लिए जिंदगी पड़ी है। पहले मुझे अपना करियर बनाने दो। तुम जानते हो फिल्मों में बच्चों वाली को हीरोइन कौन लेता है?’ 
‘क्या बात करती हो मीना ? तुम बहुत सुंदर हो...!’ 
‘अब मक्खन लगाना बंद करो। तैयार हो जाओ, आज मुझे नई फिल्म की स्क्रिप्ट सुननी है।’ 
‘किस विषय पर...’ 
‘यह एक अंग्रेजी नॉवल हैं- ‘लेडी चार्टली का प्रेमी’।’ 
‘मीना तुम भी किस तरह का रोल करने का तैयार हो जाती हो।’ 
‘क्यों इसमें क्या बुरा है ?’ 
‘बुरा ही बुरा है। उसमें नायिका अपने पति को छोड़ देती है।’ 
‘रवि अब बस भी करो, माया-नगरी में काम मिलना कितना कठिन है? अगर किसी तरह काम मिलता है, तो तुम...! बस करो, अगर तुम नहीं चाहते तो मैं काम करना छोड़ देती हूँ। तुम्हें मेरा फिल्मों में काम करना कोई खास पसंद नहीं है।’ 
मुझे अपने व्यवहार पर शर्म आ रही थी- ‘मीना, तुममें तो अभिनय कूट-कूट कर भरा पड़ा है। तुम्हें बहुत सारी फिल्में मिल जाएगी। तुम चिंता मत करो। तुम तो अभिनय के लिए बनी हो।’
‘हाँ, आज तुमने मेरा दिल जीत लिया है। तुम कितने अच्छे हो, रवि। पर तुम बात-बात पर भावुक हो जाते हो। भावुकता इंसान की कमजोरी है, समझे मेरे सरताज।’ 
दूसरी तरफ बॉस का व्यवहार भी मेरे प्रति घृणा से भरता जा रहा था- ‘जब नौकरी ढंग से करनी नहीं है तो छोड़ क्यों नहीं देते ? ऐसे तो काम चलने वाला नहीं है। तुम्हें जल्दी ही निर्णय करना होगा।’
‘सर, बस थोड़ा सा टाइम चाहिए।’ 
अब मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि नौकरी भी हाथ से जाने वाली है। आज तो बॉस ने सभी के सामने ही मेरी इज्जत उतार दी थी। 
‘रवि, देखो मुझे कई फिल्मों में काम करने के ऑफर मिले हैं।’ वह कहती जा रही थी, मैं सुनता जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था। मीना क्या कह रही थी- ‘बस अब मैं शानदार हीरोइन बन जाऊंगी। मेरे अभिनय पर जोरदार तालियाँ बजेगी। तुम, देखना मेरा सपना पूरा होगा। मेरी मेहनत रंग लाएगी। मेरा अभिनय मुझे अमर कर देगा।’ 
मैं फिर वर्तमान में लौटाया। पत्र की आखिरी लाइन थी।
‘‘...मैं तुम्हें जेल भिजवा दूंगी, अगर तुमने मुझे ढूंढने की कोशिश की तो...।’’
डोर बेल लगातार बज रही थी। सामने पेपर वाला खड़ा मुस्कुरा रहा था- ‘सर देखो, मीना जी को उनके शानदार अभिनय के लिए बेस्ट अभिनेत्री का अवॉर्ड मिला है। बधाई हो, बधाई हो।’ 
मैं मन ही मन कह रहा था- मेरे साथ भी तो मीना इतने साल से अभिनय कर रही थी। प्यार का अभिनय...!
उसने दरवाजा बंद कर दिया।

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