रचनाकारों से

रचनाकार रचना के सृजन के उपरांत उसके प्रकाशन का इच्छुक होता है। वह चाहता है कि उसकी रचना शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशित हो। उसकी इच्छा होती है कि लोग जल्दी से जल्दी उसके विचारों को जानें-समझें। इसके लिए वह प्रयास भी करता है। लेकिन होता क्या है कि अक्सर उसकी रचना प्रकाशित होते-होते रह जाती है और वह संपादक पर दोषारोपण आरंभ कर देता है। अगर रचना प्रकाशित हो गयी तो स्तरीयता के शिखर को पत्रिका ने छू लियाऔर अगर रचना अस्वीकृत हो गयी तो स्तरहीनता के शिखर को। रचना प्रेषित करते समय प्रत्येक रचनाकार को यह स्मरण रखना चाहिए कि वह पत्र/पत्रिका के स्वरूप व लक्ष्य को ध्यान में रखकरउसके अनुरूप ही रचना प्रेषित करें। अधिकांश पत्र/पत्रिकाओं  में रचना-प्रेषण संबंधित कुछ निर्देश दिये होते हैंउन पर ध्यान दें। ‘मधुराक्षर’ कार्यालय में प्रतिदिन सम्पूर्ण देश से सैकड़ों रचनायें प्रकाशनार्थ प्राप्त होती हैं। कुछ दिनों के उपरांत रचना प्रकाशित करवाने के लिए फोन आने प्रारंभ होते हैं। ऐसे रचनाकारों से विनम्र अनुरोध है कि रचना भेजते समय निम्न बिंदुओं पर ध्यान दें-

 केवल मौलिक व अप्रकाशित रचना की मूलप्रति ही प्रकाशनार्थ भेजें। रचना के अंत में अपना नाम पतामोबाइल नंबर अवश्य लिखें। साथ में इससे संबंधित घोषणा पत्र व आवरण पत्र अवश्य संलग्न करें।

 रचनाएँ यूनिकोड में टाईप हुई होनी चाहिएँ। पीडीएफ़ बिल्कुल मत भेजें। अन्य प्रचलित फ़ांट में टाईप की हुई रचना स्वीकार की जा सकती है। परन्तु परिवर्तन करने और उसमें आई ग़लतियों को दूर करने में लगने वाले समय के कारण ऐसी रचनाओं के प्रकाशन में देर लग सकती है। रचना प्रकाशन के लिए कम से कम छह माह का इंतजार करने के बाद ही संपर्क करें या रचना को अन्यत्र प्रषित करें। स्वीकृति-अस्वीकृति की सूचना के लिए अपना नाम-पता लिखा पोस्टकार्ड व रचना वापसी हेतु पर्याप्त डाक टिकट लगा लिफाफा अवश्य भेजें।

 रचनाएँ माइक्रोसॉफ़्ट के वर्ड फ़ॉर्मैट (.doc, .docx); .txt; ओपनऑफ़िस राइटर या लिब्रेऑफ़िस राइटर के .odt फ़ॉर्मैट में भेजें।

 रचनाओं को भेजने से पहले एक बार पढ़ कर ग़लतियाँ सुधार लें। बहुत अधिक ग़लतियों वाली रचनाओं को डिलीट कर दिया जाएगा।

 शोध निबंधों के संदर्भों सूची की ओर विशेष ध्यान दें।

 समीक्षार्थ कृति की दो प्रतियां भेजेंसमीक्षा (अप्रकाशित) के साथ एक प्रति।

 रचना-प्रकाशन से पूर्व लेखक को सूचित करना सदा सम्भव नहीं होता। इसलिए ‘मधुराक्षर’ को नियमित रूप से पढ़ते रहें।

 मधुराक्षर’ एक लाभ निरपेक्ष पत्रिका है। इसमें प्रकाशित रचनाओं के लिए न तो कोई राशि ली जाती है और न दी जाती है।

 अगर आपकी रचना प्रकाशन के लिए स्वीकृत होती है तो मधुराक्षर’ उसे लिखितवीडियो या ऑडियो रूप में या तीनों रूप में प्रस्तुत करने का अधिकार रखता है। इसके लिए लेखक की पुनः स्वीकृति नहीं ली जाएगी।

 आप अपनी रचनाएँ madhurakshar@gmail.com पर भेजें। हर रचना के मिलने की सूचना लेखक को देना हमारे सामर्थ्य से बाहर है।

उपरोक्त बिंदुओं के अतिरिक्त एक बात और स्मरण रखें कि यदि आप किसी पत्र-पत्रिका में अपनी प्रकाशित रचना भेजते हैंतो इसकी सूचना संबंधित संपादक को अवश्य देंताकि यदि संपादक उस रचना को प्रकाशित करना चाहे तो संबंधित पत्र-पत्रिका का उल्लेख भी कर दे। मित्रों! छपास की भूख को अपने अंदर घर न बनाने दें। यदि आपने समाज के हित को ध्यान में रखकर कुछ लिखा है तो वह समाज के सामने अवश्य आयेगा। बहुत लिखा जा रहा है। दूसरे रचनाकारों को भी प्रकाशित होने का अवसर दें। एक आखिरी बातहमें प्रकाशक न समझें। संपादन के अधिकार में हस्तक्षेप न करें। हालाकि अधिकांश रचनाकारों का रवैया सहयोगात्मक होता हैलेकिन कुछ रचनाकारों की सोच होती है कि जो जैसा उन्होंने भेजा हैउसे ज्यों का त्यों प्रकाशित कर दिया जाय। ऐसा ‘मधुराक्षर’ ही नहींकिसी भी स्तरीय पत्रिका के लिए संभव नहीं है। मित्रों! सृजनधर्मी होने के कर्तव्य का निर्वहन कीजिए। केवल प्रकाशित होने के न लिखिए। समाज को दिशा-निर्देश देने के लिए लिखिए। जो भी लिखिएपहले स्वयं पढ़िए। मनन कीजिएसोचिए कि क्या समाज को इस लेखन से लाभ है यकीन मानिए... तभी लेखन सार्थक होगाऔर समाज आपकी लेखनी की जय बोलेगा।              

 

संपादक

डॉ. बृजेन्द्र अग्निहोत्री


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