तेरी रूह से गुज़रते हुए : सरोज राम मिश्रा, मधुराक्षर प्रकाशन, फतेहपुर (उ.प्र.)
प्रेम, प्राणिमात्र की
अभीप्सा है,
एक अनबुझ प्यास है प्रेम ।
धरती का प्रत्येक प्राणी किसी न किसी रूप में प्रेम जीता है या जीना चाहता है।
प्राणि-जगत् में मनुष्य सबसे सचेतन प्राणी है, इसी कारण वह
प्रेम की अनुभूति को अनेक प्रकार से ग्रहण करता है और उस अनुभूति को अनेक प्रकार
से व्यक्त भी करता है। यह बात अलग है कि प्रेमानुभूतियों की अभिव्यक्ति भी प्रेम
की ही भाँति कभी पूर्ण नहीं होती। ऐसी ही प्रेम की बहुरंगी अनुभूतियों से सजा है, सरोजराम मिश्र 'प्रकृति' की कविताओं का
संग्रह- 'तेरी
रूह से गुज़रते हुए'।
छोटी-बड़ी बाईस कविताओं के इस संग्रह में प्रेम की सुगंध है, प्रेम का मादक
स्वाद है, प्रेम
की कोमल छुअन है,
इन कविताओं के शब्द-चित्रों में प्रेम ही दृश्यमान होता है और कविताओं के पाठ
में प्रेम की ही अनुगूँज सुनायी पड़ती है। कवयित्री ने कविताओं में व्यक्त
प्रेम-भावना कृष्ण को समर्पित किया है (वक्तव्य) । किंतु यहाँ कृष्ण- प्रेम, मोक्ष की कामना
नहीं करता और न ही यह प्रेम अलौकिक है। इन कविताओं में प्रेम, प्रेम का
आकांक्षी है,
साथ का आकांक्षी है- “अक्सर में सोचती हूँ/मेरे
तेरे बीच/मिलन की बेला मेरे साँवरे/जब
आयेगा तू सामने.../बैठकर तेरे कदमों में/अपलक
निहारूँगी मैं तुझे/चाह तो होगी कि भर लूँ तुझे/अपनी
कोमल बाँहों में।“
प्रेम जब आत्मा में उतर जाता है तब वह
अनजाना प्रेमी साथ-साथ चलने लगता है और तब 'श्वान साँसों ' का पीछा करना
प्रेमी की नियति बन जाती है। 'तेरी
रूह से गुज़रते हुए '
की कवितायें ,
कविता के भावक को साथ लेकर ,प्रेम
में मन की विकलता,
समर्पण,
स्वयं को खोने और तलाशने की गहन अनुभूतियों से गुज़रती हैं। इस संग्रह की
कविताओं का एक आकर्षण,
प्राकृतिक सौन्दर्य बोध भी है। इन कविताओं में प्रकृति प्रेमी का सहपथिक है।
प्रेमी के मन की उलझनें,
विरह, संयोग
और विह्वलता प्रकृति का हाथ थामे प्रेम-पथ पर अग्रसर होती रहती हैं। कविताओं का बिंब-विधान
सुंदर है। प्रेम-पियासा मन प्रकृति के साथ घुल मिल गया है। दिल के दरीचे पर बादल
के टुकड़े का दस्तक देना,
एक गाढ़ी सोई शाम,
देहशांत अडोल चाँदनी झील जिसमें शब्दों के कंकर से हलचल उत्पन्न होती है, आकाश के काले
शामियाने में चाँद का एक छेद जैसा दिखायी देना, गोधूलि में
पेड़ों का तिमिर छाया ओढ़ना आदि ऐसे प्राकृतिक विम्ब हैं जो भावों के विभिन्न
रंग-रूप को सजीवता के साथ चित्रित करते हैं। इस काव्य संग्रह की कुछ कविताओं की अनुभूति
बहुत वैयक्तिक हो गयी है। ऐसा तब होता है जब रचनाकार भावजगत् में बहुत गहरे उतर जाता है। वैयक्तिक अनुभूतियों का
साधारणीकरण कठिन होता है। कुछ कविताओं में उर्दू के कम प्रचालित शब्दों का प्रयोग
भी असहज करता है। इससे पढ़ने के प्रवाह और काव्य-रस की ग्राह्यता में बाधा उत्पन्न
होती है।
'तेरी रुह से गुज़रते हुए' कविता संग्रह आकार की दृष्टि
से भले ही छोटा संग्रह है, किंतु भावानुभूति और प्रकाशन की दृष्टि से भव्य है। संग्रह
में प्रत्येक कविता के साथ रेखाचित्र भी छपे हैं । इन कविताओं को पढ़ते समय जहाँ
एक ओर मनश्चक्षुओं में सतरंगी दृश्य उभरते हैं वहीं दूसरी ओर इन रेखाचित्रों से
काव्यात्मकता मुखरित होती है। ये रेखाचित्र भी कवयित्री द्वारा ही रचे गये हैं, इसके लिये वे
अलग से प्रशंसा की पात्र हैं। सरोजराम मिश्र 'प्रकृति ' की इन कविताओं
में ताज़गी है,विम्बों
की छटा है, प्रकृति
का सुंदर मानवीकरण है। ये कवितायें पाठक को ऐसे मनस्लोक में ले जाती हैं, जहाँ प्रेम है, प्रेम के लिए
छटपटाहट है,
प्रेम पाने का आह्लाद है और वियोग का दुख भी है। प्रेम रस से अभिषिक्त यह
संग्रह पठनीय और संग्रहणीय है।
राजेश तिवारी
प्रवक्ता
(हिंदी), ग्रामोदय आश्रम पी.जी. कालेज, सया, अम्बेडकरनगर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें